ग़ाज़ियाबाद। विश्व ब्रह्मऋषि ब्राह्मण महासभा के पीठाधीश्वर ब्रह्मऋषि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि यदा-कदा ऐसा हो जाता है कि व्यक्ति बोलना कुछ चाहता है, लेकिन बोल कुछ और जाता है। यह अहसास होने पर कि जो बोला गया, वह गलत है तब यही कहने की नौबत आती है कि 'जुबान फिसल गई।' भले इससे बिगड़ती स्थिति से बचने में सहायता मिल जाती हो, लेकिन माना यही जाता है कि जुबान फिसली नहीं, बल्कि मन में जो भाव थे, वही जुबान पर आ गए। 

एक कहावत है, 'बातन हाथी पाइयां, बातन हाथी पांव। यानी 'अनुकूल शब्द बोलने पर उपहार मिलता है और प्रतिकूल बात कहने पर दंड।' एक अन्य कहावत है, 'जीभ पर लगी चोट ठीक हो जाती है, जबकि जीभ से लगी चोट जल्दी ठीक नहीं होती।' यानी कुछ खाते-पीते या किसी अन्य कारणों से जीभ कट जाए या चोट लग जाए तो उसका उपचार संभव है, किंतु उसी जीभ से निकली बात से किसी को चोट पहुंचती है तो उसकी टीस गहरी होती है। 

कई उदाहरण हैं कि जब लोगों को भगवान से इच्छित वरदान मांगने की बारी आई तो उनके मुंह से कुछ और निकल गया। जैसे कुंभकर्ण 'इंद्रासन' की जगह 'निद्रासन' बोल गया। जब जुबान फिसली तो वरदान में उसे निद्रासन ही मिला। 

बात करने के लिए मुंह और जिह्वा का प्रयोग किया जाता है। मुंह के आकार पर ध्यान दिया जाए तो ऊपर-नीचे के होंठ बिल्कुल 'धनुष' का आकार लिए होते हैं। इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने पर जिह्वा से बाण के रूप में बात निकलती है। मृदुल, सौम्य एवं स्नेहपूर्ण शब्द जब जिह्वा से निकलते हैं तो पुष्पबाण जैसे मोहक लगते हैं। पुष्पबाण होने की वजह से उन शब्दों से खुशबू निकलती है, जबकि प्रतिकूल, घातक एवं आक्रामक शब्द युद्ध के मैदान में प्रतिद्वंद्वी को मारने वाले बाण की तरह हो जाते हैं। इस तरह के बाण चलने पर खून की नदी बहने लगती है। 

इसीलिए आवश्यक है कि शब्दों के प्रयोग में सतर्कता बरतने का पूर्ण अभ्यास किया जाना चाहिए, ताकि जिह्वा से निकली वाणी घातक बाण न बन जाए।



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