बीकानेर : बृजेश श्रीवास्तव। समाजसेविका सुधा आचार्य जो कि वार्ड संख्या 2 की पार्षद भी हैं, गत कई वर्षों से चिड़ियों को बचाने के लिए सतत् प्रयासरत हैं।
इसी कड़ी में भारत तिब्बत सहयोग मंच जो कि डॉ इंद्रेश कुमार, सदस्य केंद्रीय कार्यकारिणी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मार्गदर्शन में सदैव राष्ट्रहितार्थ कार्यों को संपादित करता रहा है, के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में भारत तिब्बत सहयोग मंच और डी.एस. आचार्य मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में अनेकों चिड़िया महलों का वितरण किया गया।
भारत तिब्बत सहयोग मंच, प्रकृति संरक्षण प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय सहसंयोजिका सुधा आचार्य ने बताया की वर्तमान में चिडियों का अस्तित्व अत्यंत खतरे में है। पहले जहां हम खेत-खलिहान , हमारे आस-पास, घरों की मुंडेर आदि सर्वत्र स्थानों पर चिड़ियों को देखते थे। उनकी चींचीं की मधुर आवाज सुनते थे, अपने बच्चों को चिड़िया दिखा कर उनका मन बहलाते थे। आज न जाने वह चिड़िया कहां खो सी गई हैं। यही चिड़िया कभी किसानों की मित्र भी कही जाती थी परंतु आज,,,, चिड़िया स्वयं के अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है। इस हेतु हम सभी को आगे आकर के चिड़ियों को बचाना होगा। ताकि भावी पीढ़ी चिड़ियों को केवल छाया चित्रों में ही नहीं, वास्तविक रूप में भी देख सके और उनकी आवाज सुन सके।
सुधा आचार्य ने बताया कि जब कोरोना काल में कुछ लोगों को चिड़िया के बच्चों को फ्राई करके खाते हुए देखा तो उनका हृदय पीड़ा से भर गया और तभी से उन्होंने ठान लिया कि वो चिड़ियों को बचाने के लिए सदैव तत्पर रहेगी। इसी दृष्टिकोण से सुधा आचार्य निरंतर चिड़ियों को बचाने के लिए प्रयासरत हैं। तभी तो सुधा आचार्य ने चिड़िया के लिए मिट्टी के बने हुए घोंसले को "चिड़िया महल" का नाम दिया है।
पार्षद सुधा आचार्य ने आगे बताया कि जब हम इन चिड़िया महलों को अपने घरों के आसपास लगा देते हैं तो दो-तीन दिन तक चिड़िया इसके इर्द-गिर्द घूमती है और पता लगाती है। पूर्ण जांच पड़ताल करती है और जब उसको पूर्णरूपेण विश्वास हो जाता है कि मैं अपने परिवार सहित यहां सुरक्षित रह सकती हूँ तो वह इस "चिड़िया महल" में रहने का मानस बना लेती है। तदुपरांत चिड़िया छोटे-छोटे तिनके, रुई, बाल और कोमल कपड़ों की अत्यंत छोटी-छोटी कतरन लेकर के इसमें घुसकर के अपना बिछौना तैयार करती है और समय आने पर इसी "चिड़िया महल" में वह अंडे देती है। जब तक अंडे में से चिड़िया के बच्चे निकल कर नहीं आते, तब तक चिड़िया और चिड़ा दोनों मिलकर रखवाली करते हैं। जैसे ही चिड़िया के बच्चों की किलकारी इसमें फूट पड़ती है, चिड़ा और चिड़िया दोनों ही उनके लिए चुग्गा और दाना लाने के लिए तत्पर हो जाते हैं। दोनों में से कोई एक इन बच्चों की रखवाली करता है और दुसरा चुग्गा -दाना की व्यवस्था करता है। कुछ समय पश्चात चिड़िया के बच्चे उड़ने लायक हो जाते हैं तो वे इस महल में से फुर्र से उड़ जाते हैं।
सुधा आचार्य ने एक और विशेष बात बताई कि जब एक बार एक चिड़िया इस महल में आ जाती है तो जब भी वापस उनका प्रजनन काल होता है वह इसी महल में आती है और यहीं पर अपने अंडे देती है।
कई बार तो दो चिड़ियों को महल हेतू संघर्ष करते हुए भी देखा गया है।
तो आइए हम भी प्रकृति को संरक्षित करें और पशु पक्षियों को बचाने में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करें।
तो आओ,,,,
"चिड़िया बचाएं, उसे भी महल में बिठाएं"
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