लगता है कि मैं सठिया गया हूँ। यह सठियाना नहीं तो और क्या है कि अब जब किसी अखबार में काम ही नहीं करता तो फिर मन ही मन खबरों के हैडिंग क्यों लगाता रहता हूँ? क्यों खयालों में किसी बड़ी खबर की साइड स्टोरीज तैयार करता रहता हूँ? अब देखिए न, हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा होते ही मेरे मन में फिर खबरों के अनेक अछूते एंगल विचरण करने लगे। सबसे खास विचार तो यही आया कि क्यों न उन लोगों से प्रतिक्रिया ली जाए जिनका कोई अपना राम मंदिर आंदोलन के दौरान हुए दंगों में मारा गया था। आंकड़े कहते हैं कि मंदिर आंदोलन के दौरान देश भर में हुए दंगों में कम से कम दो हजार लोग मारे गए थे। अब किससे छुपा है कि लाल कृष्ण आडवाणी के खाते में राम मंदिर आंदोलन के अतिरिक्त और कुछ खास नहीं है और उसकी कीमत भी उन्होंने नहीं वरन देश ने चुकाई थी। 

खयाली खबरों के बाबत सोचता हूँ तो लगता है कि एक खबर तो यह भी बनती है कि भारत रत्न देने से पूर्व देश को जरा खुल कर उनकी सेवाओं के बाबत बताया जाना चाहिए। बेशक एक पार्टी और उसकी विचार धारा के लिए उन्होंने बहुत काम किया मगर इसे देश सेवा कैसे कहा जा सकता है? भाजपा रत्न भला भारत रत्न कैसे हो गए? खबर का एक एंगल यह भी बनता है कि सत्ता के सर्वोच्च पद पर लगातर दस साल जमे रहने के बाद मोदी जी को अब जाकर आडवाणी जी का ख्याल क्यों आया? क्या देश में चरम पर पहुँच चुके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को और तेज करने के लिए ही तो नहीं एन चुनावों से पहले ऐसा किया जा रहा है? यदि आडवाणी जी भारत रत्न हैं तो पिछले दस सालों में उनकी ही पार्टी ने उनकी दुर्गति क्यों की? बीते इन सालों में आडवाणी जी पर हजारों चुटकुले बने, कहीं यह उनका असर तो नही है? आडवाणी जी इतने ही महान हैं तो उन्हें उस राम मंदिर के उदघाटन में बुला कर सम्मानित क्यों नहीं किया गया जिसके लिए उन्होंने देश के सौहार्द की भी बलि चढ़ा दी थी?

भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और घोषित रूप से सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक, विज्ञान , मनोरंजन, खेल आदि क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाना चाहिए मगर यह भी अब राजनीति का एक हथियार नहीं बन गया क्या? क्या वजह है कि अब तक दिए गए पचास भारत रत्न सम्मान में आधे से अधिक राजनीतिज्ञों की झोली में गए? क्या देश के अन्य क्षेत्रों में कोई काम नहीं हो रहा? अभी दस दिन पहले ही बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई थी और अब अचानक आडवाणी जी का भी नंबर लगा दिया गया? देश को यह जानने का हक तो है ही कि एन चुनाव से पहले ही ऐसा खयाल हमारे कर्णधारों को क्यों आता है? एक खबर तो यह भी बननी चाहिए कि प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा के लिए चर्चित रहे आडवाणी जी कैबिनेट मंत्री के दर्जे वाले इस सम्मान को पाकर क्या सचमुच गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं? वैसे खबरों के एंगल तो और भी बहुत हैं मगर सवाल तो वही है कि इन्हें छापेगा कौन? भला आज के इस माहौल में ऐसी साइड स्टोरीज छापने की हिमाकत कौन सा मीडिया संस्थान कर सकता है? मगर फिर खयाल आया है कि ख्याली खबरों के ऐसे एंगल सोचने में भला क्या हर्ज है? सोचने पर पाबंदी तो अभी बहुत दूर ही है ना?

रवि अरोड़ा 

(पत्रकार एवं लेखक)




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