फ़िल्म "एनिमल" पर कवि जतिन सिंह की स्वरचित कविता: -
सुना था इंसान एक सामाजिक प्राणी है,
पर आजकल दिखती अलग ही कहानी है,
पता नही, जानबूझ कर करता है,
या फिर इंसान की नादानी है |
अब गुज़र रहा सिर के ऊपर पानी है,
धीरे-धीरे बिगड़ती भारत की संस्कृति जा रही है|
अच्छी चीज़ो की जगह,
गन्दी-गन्दी चीज़ें चलचित्रों में दिखाई जा रही हैं |
जों बोगे, वही पाओगे,
उस से बच कर कहाँ जाओगे |
जो समाज में दिखाओगे,
वही होता तुम पाओगे |
गलत प्रदर्शनी करने वाले को,
मिलेगा अगर प्रोत्साहन |
आने वाली पीढ़ी बनेगी वैसी,
चाहें वह है भगवान या फिर हैवान |
हे इंसान! गलत को गलत नहीं बताओगे,
इंसान को जानवर बनता जल्द ही पाओगे |
फिर यह किसका दोष बताओगे,
किस-किस के आगे रोष जताओगे |
हे दोस्त! अपनी बुद्धि का प्रयोग करो,
गलत चीज़ों और चलचित्रों को शेयर मत करो |
माना की यह चल रहा युग कलयुग है,
खुद ही मानव, खुद ही दानव है |
अब तुम ही बताओ,
खुद को क़्या बनाओगे |
इंसान को इंसान,
या फिर जानवर बनाओगे |
कवि : जतिन सिंह
Email id : jatinsingh380@gmail.com
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