अनुक्रमणिका

1. पूनम गोयल जी
2. प्रतिमा दुबे जी
3. प्रवीना कुमारी जी
4. रूबी मनोज झा ’रुशिता’ जी
5. रश्मि श्रीमाली ’दामिनी’ जी
6. रवि कुमार झा जी
7. रश्मि राजेंद्र श्रीमाली ’रेशमा’ जी
8. सुचित्रा श्रीवास्तव जी
9. सुरेखा सिसौदिया जी
10. सूरज कांत जी
11. शोभना तनेजा जी
12. सुरेश कुमार गुप्ता जी

*** (1) ***


नाम : पूनम गोयल

स्थान: नई दिल्ली 

अध्ययन स्नातक ( सोनीपत , हरियाणा से )

साहित्यिक क्षेत्र में मैं विगत् 40 वर्षों से कार्यरत हूँ।

मैं काव्य करती हूँ और अभी तक देवनागरी लिपि के माध्यम से , लगभग 7 लहज़ों में रचनाएँ लिखीं हैं ।

वे हैं —हिन्दी , अंग्रेज़ी , उर्दू , हरियाणवी , पंजाबी , भोजपुरी और बृज भाषा

ईश्वरकृपा से समय-समय पर कुछ ऑनलाइन मंचों पर काव्य-पाठों का अवसर मिला 

जैसे कि आकाश कविघोष पत्रिका व अपना साहित्य सरोवर , आदि

इसके अतिरिक्त फेसबुक पर भावों के मोती समूह पर भी मैं काफ़ी समय तक रचनाएँ प्रेषित करती रही ।

2-3 बार ऑफलाइन भी काव्य पाठ का अवसर मिला।


श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा

होने जा रही है अयोध्या में ,

           श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा ।

गर्व से आच्छादित है मन ,

        यह सोचकर कि होगी कितनी भव्य लीला ।।

श्रीराममय है इस समय ,

         समस्त भारतवासी ।

घट-घट में बसे हैं राम उनकें ,

        हैं चहूँ ओर उनकें उपासी ।।

गली-गली , शहर-शहर में ,

         है श्रीराम नाम का गुंजन ।

समर्पित है बस श्रीराम को ,

          मानव का हर कण-कण ।।

लगभग 500 वर्षों के उपरान्त् ,

       रामलला मन्दिर-प्रांगण में पधारेंगे ।

उनकें दर्शनों के लालायित भक्तों के ,

        अब स्वप्न पूरे हो पाएँगे ।।

निखर गई सम्पूर्ण अवधनगरी ,

      अपनें रामलला के स्वागत में ।

दसों दिशाओं में छाई खुशहाली ,

            अपनें प्रिय श्रीराम के स्वागत में ।।

हो जाएँगे हम सभी धन्य ,

       श्रीराम का समागम पाकर ।

सीखेंगे जीवनयापन के विभिन्न आयाम ,

    अपनें प्रिय स्वामी का सानिध्य पाकर ।।


एक प्रेमगीत

दिलबर, दिल के पास है तू ।

दिलबर, दिल में ख़ास है तू ।।

दिल की धड़कन में बस तू ।

दिलबर, तन-मन में बस तू ।।

तू ही तू, तू ही तू ।

तू ही तू, बस तू ही तू ।।

दिलबर •••••••••••।

जब से तुझको देखा है,

 बस तुझको ही चाहा है ।

तेरे सिवा इस दुनिया में,

रब से कुछ नहीं माँगा है ।।

इस दिल में बस तू ही तू ।

तू ही तू , बस तू ही तू ।।

दिलबर •••••••••••।

चाहत में मैं लुट जाऊँ,

यम से भी मैं लड़ जाऊँ ।

तेरे लिए, अ’साथियाँ,

हर शह से मैं उठ जाऊँ ।।

इन नज़रों में तू ही तू ।

तू ही तू , बस तू ही तू ।।

दिलबर •••••••••••।

चाहत के मोती मैंने,

 आँचल में सँजोए हैं ।

मन का धागा लेकर के,

श्वासों में पिरोयें हैं ।।

अन्दर तू , बाहर तू ।

तू ही तू , बस तू ही तू ।।

दिलबर ••••••••••••।

 *** (2) ***
                    
परिचय

नाम: प्रतिमा दुबे 

कार्य : गृहणी स्थान: प्रयागराज उत्तर प्रदेश       

अभिरुचि: काव्य, छंद ,गीत ,ग़ज़ल लेखन

विधा _लावणी छंद    

      देख अवध की छटा निराली ,सारी दुनिया हर्षायी।

नूतन नवनिर्माण देख कर, जग में खुशियां हैं छायी ।


कितने वर्षों बाद आज ये ,सुखद स्वप्न साकार हुआ ।

बाल रूप में प्रभु को पाया ,सबका प्राणाधार हुआ ।

तन मन सब आनंदित है , बने राम के अनुयायी।

देख अवध की छटा निराली ,सारी दुनिया हर्षायी।


पावन सरयू घाट हमारा ,सुंदर भव्य धरोहर है।

लहर लहर करती जल धारा ,लगती बड़ी मनोहर है ।

राम चरण छूने को आतुर ,सारे बंधन तज आई ।

देख अवध की छटा निराली ,सारी दुनिया हर्षायी।


मर्यादा पुरुषोत्तम आए,दूर हुआ सब अंधियारा।

दो अक्षर के नाम मात्र से,होता जग में उजियारा।

नूतन भव्य सृजन अति सुंदर , बजे नगाड़े शहनाई।

देख अवध की छटा निराली ,सारी दुनिया हर्षायी।     

गजल

अपना कदम बढ़ाना दुनियां मे फूंककर ।

रास्ता गलत न चलना ,चलना तू पूछकर ।


 ये ज्ञान संपदा कोई लूटता नहीं,

दौलत है ज्ञान कोई जाए न लूटकर ।


हिम्मत लगन अगर है आसान लक्ष्य है,

सूरज उगेगा कल भी हमसे पूछ कर।


जीवन में साथ छोड़ चला जब हमारा वो ,

देखा नहीं पलट कर रोया मैं फूटकर।


सम्मान हो जहां न, तिरस्कार हो वहां,

जाना नहीं कभी भी उस दर पर भूलकर।


अरमान दिल के सारे दिल में दफ़न हुए ,

चाहा तुम्हे हमेशा हमने तो टूटकर ।


कितने हसीन ख्वाब सजाए थे आंख में,

पल भर में ख्वाब सारे बिखेरा चूर कर ।


फैला तिमिर अज्ञान का देखो यहां घना,

इक ज्ञान का चिराग जला तम को दूर कर।

 *** (3) ***


परिचय

नाम : प्रवीना कुमारी

स्थान : सहरसा (बिहार)

व्यवसाय : शिक्षिका

साहित्यिक गतिविधियां : ग़ज़ल विधा में लेखन। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। बहुत से साहित्यिक मंचों पर काव्य पाठ किया है।


मुनाफ़िक़

दिखने वाला खुशगवार हर चेहरा हमेशा खुश नहीं होता
दिखने वाला अमीर हर शख्स, मन से अमीर नहीं होता।

कर जाते हैं गुस्त़ाखी समझने की जिसे हम अपना हबीब
बदकिस्मती से हर वो शख्स ,अपना हबीब नहीं होता।

जमाकर दौलत की धौंस करते हैं ज़लील अपनों को जो
वो जानते नहीं कि हर मुफ्ल़िस, ज़मीर फरोश नहीं होता।

ढ़ोग रचाने वाले अपनापन का मिलते हैं ढ़ेरों हयात में
मगर हर मुनाफ़िक़ हक़ीक़त में ,कभी अपना नहीं होता।

लाज़मी है कुछ शख्स का मुश़्किलों में मुब्त़ला हो जाना
मगर हर वो परेशान शख्स कभी, यूँ सरफिरा नहीं होता। 

समझते है अक्सर जिस शख्स को हम इंतहाई अज़ीम
कमबख़्त उस शख्स को सुख़न का, ककहरा नहीं आता।

फरोश-बेचने वाला, स़ुखन-बातचीत, मुनाफ़िक़-पाखंडी, मुफ्ल़िस-गरीब, अज़ीम-महान


अहसास

सबने आँका मेरे किरदार को महज़ साँवले रंग से मेरे
करके  दरकिनार  सीरत को देखा  फ़कत  सुरत को मेरे।

कमसुरती ने किया मुब्त़ला अहसास-ए-कमतरी में मुझे
क्योंकि कुछ अपनों ने ही तो नकारा  साँवले-रंग को मेरे।

लोग इतराते रहे अपनी खुबसूरती और गोरे रंग पर
और  नजरअंदाज करते  रहे वो मुसलसल वज़ूद को मेरे।

कसीदे पढ़ते रहे हरपल फक़त खुबसूरती के ही अपने
दिलाकर कमतरी का एहसास छलनी किया रूह को मेरे।

भूला कर सारी फराइज़े रहे महज़ खुदग़र्ज़ी में ही चूर
अपनी कमज़र्फी से तोड़ा हमेशा इस नाज़ुक दिल को मेरे।

मुसलसल-लगातार, कमज़र्फी-अयोग्यता

 *** (4) ***

परिचय

नाम: रूबी मनोज झा

पैतृक स्थान: मधुबनी (बिहार)

वर्तमान पता: अहमदाबाद (गुजरात)

शिक्षा: रसायनशास्त्र में स्नातकोत्तर।

गहन अभिरुचि : पठन-पाठन, पिछ्ले पाँच वर्ष से लेखनी मेरी सबसे अच्छी सहेली है। दो किताबों में मेरी लेखनी को स्थान मिला है। 

कार्य क्षेत्र: सखी बहिनपा "मैथिलानी समूह" अहमदाबाद ईकाई की संयोजिका हूँ । मैथिली भाषा एवं संस्कृति के साथ सामाजिक कार्य कर रही हूँ ।

गुजरात मिथिला महोत्सव में "मैथिली अभियानी सम्मान" से सम्मानित हो चुकी हूँ ।

राम नाम

राम नाम सुमिरन करले

जपले हरि का नाम ।

अद्भुत ज्ञान पुंज मिले

जैसे कोई गहरी खान।


धर्मनिष्ठ कर्मनिष्ठ बने 

उत्तम चरित्र राम।

चरण धुल तिलक करे

सद्बुद्धि दे हे राम ।


राम नाम जपले पगले

सत्य सनातन राम 

दया क्षमा सदा पले

कृपा सिंधू हैं राम ।


राम मनु राम देव रमे

हर मन बसते राम

जीवनधारा में राम बहे

डूबकी लगा श्री राम ।


राम नाम सुमिरन करले 

जपले हरि का नाम।

अद्भुत ज्ञान पुंज मिले 

जैसे कोई गहरी खान।

मुझे जानकी नहीं बनना 

सतयुग में दर्द सहा सीता ने, 

अब कलयुग का क्या कहना. 

मत बनो तुम राम अयोध्या के ,

मुझे जानकी नही बनना. 


एक कैकयी एक मंथरा, 

जीवन मे दिया बिष घोल. 

अपने साथ लखन भी नही, 

जो बोले मिसरी से बोल. 

सतयुग................. 

मत बनो................ 

एक रावण था, दिखते थे दस सर 

संहार किया जब संग थे बानर. 

अब जाने कितने हैं रावण, 

हर चेहरे मुखौटे के हैं अंदर. 

सतयुग...................... 

मत बनो.................... 

वनवास में भी संग थे दोनों, 

महल गए पर साथ न छूटा. 

अब तो भरत और लखन दोनों ने, 

मिलकर अपना महल ही लूटा. 

सतयुग........................ 

मत बनो....................... 

समाज मूक दर्शक बना, 

जनक नन्दिनी धरा में समायी. 

अब क्या उम्मीद लगाए भला, 

समाज कभी दर्द न समझा भाई. 

सतयुग......................... 

मत बनो......................... 

मर्यादा पुरषोत्तम राम ने सब कुछ खोया, 

कांटों की सेज मिली जानकी को. 

जो थोड़ा है पाया, नहीं उसे है खोना

उठा कर फेक दो कांटों के इस ताज को. 

सतयुग मे दर्द सहा सीता ने, 

अब कलयुग का क्या कहना 

मत बनो राम तुम अयोध्या के 

मुझे जानकी नही बनना ।

*** (5) ***

परिचय

नाम: रश्मि श्रीमाली "दामिनी"

स्थान: खंडवा, मध्य प्रदेश

अभिरुचि : साहित्य एवं संस्कृति 

प्रकाशन: विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

राम आए 

सदियों बाद दिन सुहाने आए 

मन उपवन घर आंगन महकाए

शबरी सा मन सब का बोला

राम आए राम आए राम आए 

नगर नगर डगर डगर सजी रंगोली

एक रंग मे रंग गई भिन्नता कि बोली

अगर चंदन से हर घर महके जाए

मदमस्त हो दिवाने झुम झुम गाए

राम आए राम आऐ राम आए 

आये हैं श्री राम संग सीता मैया

हनुमंत सेवा में आगे,

चवर डुरावे दोनो भैय्या

लक्ष्मण सुरक्षा में ठाड़े धनुष उठाए

राम आए राम आए राम आए।


तेरा झूठ

गर तुने मुझे झूठ कहाँ न होता

मेरा वजूद टुकड़ा टुकड़ा न होता


काश तेरी नीयत को समझा होता 

आज दिल तनहा-तनहा न होता


दवा समझ जहर को पिया न होता

गर तूने फरेब किया न होता


कतरा-कतरा ख्बाब बिखरा न होता

गर तूने गैरों में गिना  न होता


तेरी मसरूफियत एक दिखावा थी कभी

जान न पाते गर वो एक पल आईना न होता


रखती तुझको अपने में बाकी

गर तूने जहर का करोबार किया न होता


समेटती सारी खुशियां अपने दामन में

अगर तूने बेवफाई का इश्तहार दिया न होता


इश्क से रोशन कर देती दुनिया ’रश्मि’

गर इश्क को तुने समझा होता


तेरी अदाकारियां तुझको जीने नहीं देगी

दर्दनाक होता पल जब दम निकला न होता

*** (6) ***

परिचय 

नाम: रवि कुमार झा

पिता का नाम: स्वर्गीय श्री तेजनारायण झा,

स्थान: नई दिल्ली

साहित्यिक प्रकाशन : मानव का धिक्कार, मानव को धरा का धिक्कार, मां : (भाग एक,दो, तीन), गंगा स्नान, होली, बेरोजगार बेचारा, लालू भाई को बधाई ( नया बिहार बना लो भाई),भारतीय

भारतीय सैनिक 

एक वीर जवान जब पैदा हुआ,

मां और धरती मां की गोद पूरा हुआ,

धरती मां के गोद में जन्मा लेटा हुआ,

तब वह जवान भारतीय सैनिक हुआ।।


मां की गोद में पल्लवित हुआ,

शिक्षा दीक्षा से सम्मलित हुआ,

अन्न खाकर धरती का बेटा हुआ,

वह जवान का लहूं गर्म हुआ।।


दौड़ धूप कर शरीर हिष्ट पूष्ट किया,

तब जवान फौज सैनिक में भर्ती हुआ,

सभी सैनिक जवान आपस में मिलकर,

मां की रक्षा के लिए संकल्प लिया।।


जबतक सूरज चांद रहेगा,

मां की गोद आज़ाद रहेगी,

जबतक तन में सांस रहेगा,

भारत माता आजाद रहेंगी।।


दुनियां की कोई भी ताकत,

दुश्मनों की कोई भी लागत,

हिला नहीं सकता मेरा बावत,

उठा नहीं सकता मेरा शास्वत।।


जन्म लिया है तो धरती मां के लिए,

खिलें है तो धरती मां के लिए,

जीएंगे तो धरती मां के लिए,

मरेगें तो भी धरती मां के लिए।।


कितना भी तूफानी संकट आएं,

विद्रोहियों का मुकाबला आएं,

आतंकवादियों का गोलियां आएं,

विदेशियों से हम पर युद्ध मंडराएं।।


फिर भी हम न हटेंगे सीमा से,

धरती मां के लिए मर मिटेंगे,

एक एक ख़ून का कतरा बहाएंगे,

सिर को भारत मां पर भेंट चढेगें।।


भारत का यह इतिहास बनेगा,

भारतीय सैनिक अमर जवान बनेंगे,

देश विदेश में हमें सम्मान मिलेगा,

भारत मां की आन बान सान रहेगा।।


कर्म भूमि है कर्म के लिए,

धर्म भूमि है धर्म रक्षा के लिए,

आन बनी है सान के लिए,

मृत्यु बनी है जान के लिए।।


विडम्बना 

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में,

पग पग पर जीने में दुःख ही मिलें,

सुखों की खोज में जिंदगी ही बीते,

हर दम सोचें तो चिंता ही मिलें ।।


कैसी प्रेम जाल है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।।


सच बोले तो मार खाना पड़े,

भलाई करें तो गंवाना पड़े ,

इमानदारी करें तो नौकरी छोड़ना पड़े,

किसी से प्रेम करें तो जेल जाना पड़े।।


कैसी बोली है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।।


झूठ बोलें तो बड़ाई पाएं,

बुड़ाई करें तो मान पाएं,

बेमानी करें तो धन पाएं,

दुष्टता करें तो सम्मान पाएं ।।


कैसी पूछ है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।।


गुंडे मिलें तो शरीर पर चोट मिलें ,

झूठ बोलें तो देश के नेता बनें,

गद्दी पर बैठे तो अहंकारी बने,

मंत्री बने तो देश गरीब बनें ।।


कैसा पद है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।।


विदेशी कहें तो देश में हंगामा फैलाएं,

अलग देश की लोभ में अपनों को मार गिराएं,

ऊंचे पदों के लोभ में देश को कमजोर बनाएं,

अपने ही देश में खून की नदियां बहाएं ।।


कैसी विदेश है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।।


झूठी लोभ में पूर्वजों की अर्जी देश में,

अपनी ही देश में मिनटों में बारूद से,

जीव जन्तुओं के सुखी ऐसे देश में,

मिटा दे सृष्टि से रचाई ऐसी देश में ।।


कैसी परमाणु बम है इस दुनियां में ।

कैसी विडम्बना है इस दुनियां में।


*** (7) ***


परिचय 

नाम : मैं रश्मि राजेंद्र श्रीमाली "रेशमा"

शहर: धामनोद मध्य प्रदेश 

शिक्षा: एम ए,हिंदी साहित्य, एम ए दर्शन शास्त्र।

साहित्य: श्रंगार और विरह प्रेम पर लिखती हूं।

वाह वाह राम जी 

वाह वाह रामजी,

अरे वाह वाह रामजी।

शुभ घड़ी आई,,,,

सब भक्तो को आज,

बधाई हो बधाई।

सब रस्मों से बड़ी है आज राम की बेठकाई।

वाह वाह रामजी,,,

देखो संत जी ,,,

अजी आपके लिए

मोदी योगी ने बड़े काम है किए

अरे जनता भी अब मुस्काई।

देखो देखो खुद पे 

अयोध्या इतराई।

वाह वाह रामजी,,,

आई है,शुभ घड़ी

आज आज मुरादे बड़ी।

सहमी खड़ी है देखो दुनिया सारी।

राम राज्य लायेंगे हम

दिए जलाएंगे हम।

देखो देखो भारत मे 

फिर दिवाली है आई।

सब रस्मों से बड़ी है

राम की बेठकाई ।

देखो,खूब सजा राम दरबार यहां,,

मंगल दर्शन पा लो।

जिंदगी धन्य हुई। 

अब रश्मि भी धन्य हुई।

वाह वाह रामजी।

शुभ घड़ी आई।।


हम कथा सुनाते है

हम कथा सुनाते हैं।

राम राम, राम का अर्थ,

आदर्श, मर्यादा, प्रतिबद्धता।

कर्तव्यनिष्ठ, गुणी, संतुष्ट,

राम कहाते हैं।

श्री राम कहाते हैं।


राम अपने नाम को

सार्थक करते हैं।

जीवन की हर चुनौती को

स्वीकार करते हैं।

हम कथा सुनाते हैं।


राम समता का स्वयं परिचय देते हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहाते हैं

राम का अर्थ, जीवन पर्यंत न हम खोज पाते है।

राम जैसा बनने का अब

पुनीत कर्म करते है।

अब कर्म करते हैं।

हम कथा सुनाते हैं,,,

राम कर्म है, आदर्श है, 

आज्ञओं का ा पालन है।

वे साक्षी भाव,समता भाव,

बंधुत्व का भाव रखते हैं।

हम कथा सुनाते हैं,,,,,

आवो सब मिलकर 

धारा की स्वर्ग बनाते हैं

देव स्वभाव हो,

सबका अब प्रेम लुटाते हैं

मिटे कलह क्लेश,

ह्रदय में आनंद भरते हैं

हम कथा सुनाते हैं,,,

राम सा विवेक ,सीता सी बुद्धि ।

धैर्य और दृढ़ता का वचन निभाते हैं।

लक्ष्मण सा भाव, भरत सा समर्पण ,

शत्रुघ्न जैसी अब सेवा करते हैं

धारा ही सुखी, गगन हो प्रसन्न  

ऐसा राम राज्य अब हम बनाते हैं

हम कथा सुनाते हैं,

राम कथा सुनाते हैं

जय श्री राम 

*** (8) ***

परिचय

नाम.. सुचित्रा श्रीवास्तव, मोतिहारी, बिहार

शिक्षा,.. इंटर, आई. एस. सी/

महंत, दर्शन दास महिला महा विधालय मुज़फ़्फ़रपुर। 

मैं गृहणी हूं। पढ़ने और लिखने का शौक मुझे बचपन से था। 

किसी कारणवश आगे की पढाई नही कर सकी। 

परवाज़ उड़ान कल्पनाओं की मंच से पहली बार जुड़ने का मौका मिला है। 

इंटरनेट के माध्यम से लिखने का शौक जारी है। 

उत्कृष्ट वार्ड पार्षद सम्मान से सम्मानित।

श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा 

22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा। 

पूर्ण हुई भक्तों की निष्ठा। 

राम सिया का बन गया धाम। 

श्री राम, जय राम, जय जय राम।

 

केसरी लाला मारुति, 

पवन पुत्र हनुमान। 

विभीषण के व्यंग पे

दिखाए सीना फाड़। 

हृदय में श्री राम, जानकी। 

हनुमान की देख कर भक्ति। 

कह दिया तुम भक्तों में महान। 

श्री राम, जय राम जय जय राम।


राम लला की जयकारा 

गूंज उठी सब ओर। 

कई सौ साल बाद आई है

सुखद क्षण, प्रफुल्लित भोर। 

बच्चे, बूढ़े और युवाओं में

भगवा रंग चढ़ गया। 

भारत की शान नगर अयोध्या

राम का मान भी बढ़ गया। 

घर- घर में आई खुशहाली

दीप जला के मनाए दिवाली। 

मुख में सबके बस गए राम

श्री राम, जय राम जय जय राम। 


कितना सुंदर स्वर्ण महल बना राम दरबार। 

राम सिया की मूर्ति रूप बन कर है तैयार। 

सजी हुई है अयोध्या जैसे धरती पर स्वर्ग।

राम जी भारत के, हम भारत वासी। 

हमें है इस बात का गर्व।

 जाग उठे हैं सनातनी अब नहीं माने हार। 

राम नाम सुमिरन करे

श्री राम ,जय राम जय जय राम।


जय श्री राम

राम नाम को बिन जपे इस जीवन का क्या काम। 

राम नाम बसे कण -कण में, सबके हैं श्री राम। 

दशरथ के राम, जय श्री राम। 

कौशल्या के राम, जय श्री राम। 

लखन के राम, जय श्री राम। 

सीता के राम, जय श्री राम। 

हनुमान के राम, जय श्री राम। 

केवट के राम, जय श्री राम। 

अहिल्या के राम, जय श्री राम। 

सबरी के राम, जय श्री राम। 

तुलसी के राम, जय श्री राम। 

बाल्मीकि के राम, जय श्री राम। 

अयोध्या के राम, जय श्री राम। 

हर धाम के राम , जय श्री राम। 

हम सबके राम, जय श्री राम। 


जीवन की नैया पार लगाएं,

 बिगड़े बनेंगे सारे काम। 

मुख से राम नाम करो सुमिरन

मिल जाएगा आराम। 

कहते हनुमान जय श्री राम। 

कण- कण में राम, जय श्री राम। 

हर मन में राम, जय श्री राम। 

हर क्षण में राम, जय श्री राम। 

हर तन में राम, जय श्री राम। 

सब प्रेम से बोलो जय श्री राम। 

मन से बोलो जय श्री राम। 

भाव से बोलो जय श्री राम। 

बड़े चाव से बोलो जय श्री राम। 


जहाँ भी जाओ, जहाँ भी देखो

मिल जाएंगे राम। 

मन बुद्धि की शुद्धि कर लो,

 कष्ट हरेंगे श्री राम। 

हर प्राण में राम, जय श्री राम। 

हर तान में राम, जय श्री राम। 

हर गीत में राम, जय श्री राम। 

संगीत में राम, जय श्री राम। 

हैं वायु में राम, जय श्री राम। 

हैं जल में राम, जय श्री राम। 

हैं आग में राम, जय श्री राम। 

हर बाग में राम, जय श्री राम। 

हर पुष्प में राम, जय श्री राम। 

सुगंध में राम, जय श्री राम। 

हर चमन में राम, जय श्री राम। 

हैं गगन में राम, जय श्री राम। 

उपवन में राम, जय श्री राम।

गौ शाला में राम, जय श्री राम।

 हर मन्दिर में राम, जय श्री राम। 

हर वस्तु मे राम ,जय श्री राम। 


राम नाम की लूट मची है। 

लूट सको तो लूट लो, 

ये जीवन अनमोल रतन धन

राम नाम संग काट लो। 

वर्षा में राम, जय श्री राम।

आंधी में राम जय श्री राम। 

वेदों में राम, जय श्री राम। 

सारे ग्रंथ में राम जय श्री राम। 

पौधों में राम, जय श्री राम। 

पत्तों में राम, जय श्री राम। 

शाखाओं में राम, जय श्री राम। 

हवाओं में राम, जय श्री राम। 

हर रुत में राम, जय श्री राम। 

बसंत में राम, जय श्री राम। 

हर संत में राम, जय श्री राम। 

हर कूटिया में राम, जय श्री राम। 

हर मुख में राम, जय श्री राम। 

हर सुख में राम जय श्री राम।


राम नाम ही सबसे सुंदर, सत्य का है आधार। 

राम बिना ये दुनिया चले ना

राम सहेंगे सबके भार। 

दुख हरते राम, जय श्री राम। 

सुख देते राम, जय श्री राम। 

दीपक में राम, जय श्री राम।

 बाती में राम, जय श्री राम। 

रोली में राम, जय श्री राम। 

चंदन में राम, जय श्री राम।

मोती मे राम, जय श्री राम। 

ज्योति मे राम ,जय श्री राम। 

माला में राम, जय श्री राम। 

फूलों में राम, जय श्री राम। 

प्रसाद में राम जय श्री राम। 

गंगा के राम, जय श्री राम। 

सरयू के राम, जय श्री राम। 

हैं सबके राम जय श्री राम। 

हैं देश के राम, जय श्री राम। 

हैं स्वर्ग के राम, जय श्री राम। 

धरती के राम जय श्री राम।

राम नाम से शुरूआत करते हैं सारे काम। 

राम नाम को हृदय से लगाने

चलो अयोध्या धाम। 

 *** (9) ***


परिचय

सुरेखा सिसौदिया (व्याख्याता),

शासकीय एकलव्य आवासीय विद्यालय (विशेष पिछड़ी जनजाति भारिया, बैगा, सहरिया हेतु संचालित) मोरोद, इंदौर

अनेक साहित्यिक समूहों में सक्रिय भागीदारी, हिंदी व मराठी कवियत्री, 

प्रकाशन -काव्य अमृत अंतर्राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन -अनुराधा प्रकाशन नई दिल्ली, नव लोकांचल गीत साझा संकलन गिनीज बुक में दर्ज पुस्तक, माँ -सांझा संकलन, पिता- सांझा संकलन, 

अयोध्या राम मंदिर हेतु सांझा संकलन में प्रकाशन , नारी तू अपराजिता- प्रकाशन प्रक्रिया में, शुभ संकल्प समूह की बाल पत्रिका प्रक्रिया में, e- पत्रिकाओं में प्रकाशन। 

मायमावशी मराठी समूह के जलगांव सम्मेलन में काव्यपाठ,पाठक संसद इंदौर में नियमित काव्य पाठ,

पुष्पित तुलिका पत्रिका में नियमित लेख प्रकाशन, संपादन,

विद्यालय में जनसहयोग,विद्यार्थीयों के सहयोग से पुस्तकालय की स्थापना व संचालन

 कईं मंचो से ओनलाइन काव्यपाठ

 विभाग की पत्रिका" सरस वाणी" में संपादन।


मंगल गान

गाएं मंगल गान मनोहर

गूंजे नाद चहुँदिशि मुखर स्वर

गाएं मंगल गान मनोहर। 


राम नाम है मुक्ति सरोवर, 

दिव्यायुध ,धनु, शर धारणकर

नयन कमलदल, वसन पीतांबर, 

बाहु आजानु, नीलवर्ण अतिसुंदर

मस्तक तिलक ,भूषण मुकुटधर।। 


गाये मंगल गान मनोहर, 

गूँजे नाद चहुँदिशि मुखर स्वर। 


नासै महपातक रामाक्षार, 

व्यापै दशदिशि अजन्म रघुवर, 

भक्तरक्षक करुणा के सागर, 

यज्ञ रक्षक बने रघु निशिवासर, 

लखन कपि संग सोहे सियावर।। 


गाएं मंगल गान मनोहर, 

गुंजे नाद चहुँदिशि मुखरस्वर्। 


वैभव के सुर शचिपति सुखकर, 

शुद्ध बोध विग्रह निश्चित कर, 

नायकपद धर अवनि अम्बर, 

आलोकित मुख मंद मधुर स्वर, 

संशय मत्सर शेष जहाँ पर।। 


गाएं मंगलगान मनोहर,

 गूंजे नाद चहुँदिशि मुखर स्वर। 


विद्यानिधि तुम ज्ञानसरोवर, 

दशरथ के सुत मूर्ती मनोहर, 

अमिट सत्य तुम जगत चराचर, 

सेतु मुक्ति के भवसागर पर, 

पुरुषोत्तम कहलाये धरा पर।। 


गाएं मंगल गान मनोहर, 

गूँजे नाद चहुँदिशी मधुर स्वर

राम नाम जप ले निशिवासर, 

गाएं मंगल गान मनोहर।।


हृदय राम है

राम मेरे करुणा के सागर, 

हृदय राम है, तुम रामेश्वर

राम मेरे करुणा के सागर। 


दास तुम्हारे द्वार खड़े हैंं, 

सेवा का अवसर दो रघुवर। 

मन मेरा मंदिर  तेरा है, 

मनमंदिर बस जाओ सियावर।। 


राम मेरे करुणा के सागर . .... 


 जड़ चेतन सब जग तुमसे है, 

तारो सब जग तुम जगदीश्वर, 

भक्ति तुम्हारी पार लगाए, 

मुक्तिमंत्र दो हे मुक्तेश्वर।। 


राम मेरे करुणा के सागर....... 


सत्यमार्ग कंटक कठोर है,

 प्रेम पुष्प बरसाओ रघुवर। 

जैसे अहल्या केवट तारे 

वैसी कृपा करो करुणाकर, ।। 


राम मेरे करुणा के सागर .... 


शांति चित्त की तव चरणन है

दास को शरण में लेलो सुरवर। 

दरस से तेरे पाप मिटे है, 

दर्शन दे जाओ, हे रघुवर।। 


राम मेरे करुणा के सागर......... 


मोहित शोणित मन मेरा है, 

मोहबंध छुड़वा दो हरिहर। 

अज्ञानी हम जनम जनम से, 

ज्ञानदीप दो हे विद्याधर।। 


राम मेरे करुणा के सागर..... 


ऐसी भक्ति दो हे रघुनंदन, 

रामनाम गाये निशिवासर। 

राम मेरे करुणा के सागर, 

हृदय राम है, तुम रामेश्वर, 

राम मेरे करुणा के सागर।

*** (10) ***


परिचय 

नाम: सूरज कांत 

शिक्षा: बी एस सी - हिंदू कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय)

45 साल का प्रिंटिंग प्रेस का कारोबारी अनुभव 

जुड़ाव सेवा के संस्थान :

भाई दया सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट 

संत त्रिलोचन सिंह जी वीरजी ( झाड़ूँ वाले)

१९७७ से १९७९ ( ५० कविताएँ)

२०१० से आजतक ( २५०० कविताएँ)

विभिन्न मंचों द्वारा प्राप्त ढेर सम्मान और प्रशस्ति पत्र।


प्रभु श्री राम

अवध धाम,पधारे राम,

जय सियाराम जय सियाराम 

राम नाम जो जपते नाम,

पूर्ण करते प्रभु, सबके काम


सबने सुना,राम पधारे, 

अवध के हुए, भाग्य उजियारे 

चलो अयोध्या खुद को तारें, 

 मन ही मन, राम उचारें


हम सब के सूने मन मंदिर में, 

छाया फिर है उल्लास

भगवान राम वापिस आए, 

१४.साल ये काट वनवास 


कोई तुलसी,कोई गुलाब, 

कोई लाया माला ये खास 

अयोध्या के हर द्वार खड़ा, 

 मेरे प्रभु का हर एक दास


हम सब मिल करें प्रार्थना, 

सब मिल करें ये अरदास

सब के मन की व्यथा जानें,

 पूरी करते सबकी आस


हर तरफ़ आज बज रहे, 

ढोल मंजीरे, मृदंग नगाड़े, 

हर तरफ़ नाच रहे,  

भक्त प्रभू के, आज सब ये सारे 


रामराज्य आ गया, 

माहौल पूरा ख़ुशी का छा गया

तेरे दर्शन मात्र से ही,   

आत्मिक सुख सब पा गया 


आसमान पर सबका ध्यान, 

अवध में उतरा, पुष्पक विमान।

जय सियाराम की गूँजों से, 

झूम उठा यह आसमान


प्रभु श्रीराम 

हे प्रभु राम, शाश्वत प्रणाम,  

तुम बनाते सब के काम 

तेरे गुण, हम गाते राम,तुम सबके भगवन,सबके राम 

तुम दशरथ नंदन,मेरे राम, 

रोज़ जपते, हम तेरा नाम

रघुपति राघव राजा राम,     

पतित पावन सीता राम


हम सब के, तुम रखवारे,  

कौशल्या नंदन राजा राम

राम जानें,क्यों कर होता,

 राम से बड़ा, राम का नाम

त्रेता युग के तुम ही राम, 

मार के रावण आए श्री राम


सिया राम व लखन हमारे, 

अवध वापस आए ये सारे 

ख़ुशियों के ये फूल खिले,

चमके फिर गर्दिश के तारे

राम नाम जो नाम उचारे,  

भवसागर प्रभु आप ही तारे

घर घर में सब दीप जले हैं, 

दीपावली के दिखे नज़ारे 


प्रभु की आस्था में ही मिलता, 

हमें ज्ञान और ये मान 

जन्म भूमि राम मंदिर का,

बड़ा ही सुंदर हुआ निर्माण 

श्री राम के भक्त हनुमान,

है संकटमोचन इनका नाम 


राम दुआरे  तुम रखवारे,  

 होत ना आज्ञा  बिनु पसारे 

अवध में संग साथ पधारे,  

हनुमानगढ़ी में मंदिर थारे

जय सिया राम,जय हनुमान,

हर तरफ़ गूंज रहे ये नारे

***(11)***


परिचय

नाम :शोभना तनेजास्थान: नई दिल्ली 

लेडी श्री राम कौलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से ही अनुवाद का कोर्स किया और उसमें प्रथम स्थान प्राप्त किया।तदुपरांत 34 वर्षों तक भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में राजभाषा अधिकारी के तौर पर कार्यरत रही।

वर्ष 2017 में प्रकाशन विभाग ,सूचना और प्रसारण मंत्रालय से उपनिदेशक (राजभाषा)के पद से सेवानिवृत्त।

पत्रकारिता, अनुवाद तथा संपादन के क्षेत्रों में लगभग 36 वर्षों का कार्य अनुभव ।

आजकल कुछ साहित्यिक मंचों पर स्वतंत्र लेखन कार्य ।

इसके अलावा भारत सरकार के कार्यालयों और उपक्रमों में आयोजित की जाने वाली कार्यशालाओं में वक्तव्य देने के लिए और निर्णायक के तौर पर आमंत्रित किया जाता है। तीन साझा संग्रह प्रकाशित हुए हैं : कस्तूरी,काव्य कस्तूरी,धूम धड़ाका(बाल संग्रह)


प्रभु श्रीराम 

सीखो प्रभु श्रीराम से

दुख अपने हंसकर सहना

नहीं आसान धर्म के मार्ग पर चलना

राज पाट त्याग जंगल में रहना

सीखो प्रभु श्रीराम से..


राम त्याग हैं, राम दया

राम सत्य हैं ,राम दवा

कण कण में हैं राम समाए

मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए 


प्रभु श्रीराम अयोध्या आएंगे

प्राण प्रतिष्ठा होगी सब हर्षाएंगे

इस शुभ दिन पर सब मिल गाएंगे

प्रभु श्रीराम आएंगे


फिर सजेंगे बंदनवार और तोरण 

मंगलध्वनि,शंखनाद और रामधुनों से

फिर गुंजायमान होंगी दिशाएं

प्रभु श्रीराम आएंगे।


सूरज

उगता सूरज 

कहता है कि 

मैं समुन्दर की 

छाती पर उतर जाऊँ

अपनी सुनहरी किरणें

बिखेर दूँ इसकी

रुपहली सतह पर


डूबता सूरज कहता है 

कि दे दूँ कुछ सुकून अब

दिन भर के तपते

इस सागर को..


रोज़ाना उतरता है

समुन्दर में 

ये सूरज


कभी तो तुम भी

यूँ ही हमसे

आ कर मिल जाओ

कि मिल जाए ताबीर 

ख्वाबों को मेरे।

*** (12)***

परिचय

सुरेश कुमार गुप्ता, मुम्बई(महाराष्ट्र) 

शिक्षा : BCom, FCA , BA (sanskrit) कविकुलगुरु संस्कृत विश्वविद्यालय, नागपुर

लेखन : मन भटकता है। विसंगति देख विषाद ग्रस्त होता है। 

क्या नाम दे इस तुकबंदी को, भावनाओ में वर्षो का सार संकलित होता है।


प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी

रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी।

राम जन्मभूमि सजी दुल्हन सी भारी।

गणमान्य धनिक और नेता चले आए।

जन्मभूमि में गिद्दों के झुंड चले आए।


कोई संयोग बोले या प्रयोग कह जाए।

निश्चित राम प्रभाव जटायु चले आए। 

आस्था की दाल में लगा ऐसा तड़का।

जातियां विलुप्त थीं वे भी चली आए।


आध्यात्मिक नगरी अद्भुत है माहौल।

दिव्य शक्तियां कर रही अपना काम।

भक़्त आस्था का समुद्र हिलोरे लेता।

गिद्धों से गिद्धों की खुशी से हुई भेंट।


इवेंट के जमाने मे इवेंट तक मजा है।

आज कौन पूछे चीते को क्या सजा है।

विलुप्ति के कगार पर नई जान फूंके।

कोई कहते अफ्रीका से तो नही लाने।



    



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