नई दिल्ली: पुनीत माथुर। परवाज़ मंच द्वारा आयोजित Invite & Win Contest का 25 अक्टूबर को समापन हो गया।
प्रतियोगिता में सभी सदस्यों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। आज प्रतियोगिता के परिणाम घोषित किए गए।
विजेताओं में प्रथम स्थान भोपाल के अतुल मालवीय जी को प्राप्त हुआ।
पढ़िए अतुल जी की ये सुंदर रचना जिसका शीर्षक है ’रघुकुल सा घराना’
हे रघुपति राम,
अब तो यही कामना है,
पावन नगरी हो अयोध्या सी,
राजा राम रघुकुल सा घराना हो ।
श्रद्धा हो श्रवण जैसी,
सीता,शबरी सी भक्ति हो ।
पवन पुत्र हनुमत के जैसी
सत्य निष्ठा और शक्ति हो ॥
"अतुल" की यही अभिलाषा है,
चरण हो राजा राघव के,
जहाँ मेरा ठिकाना हो ॥
द्वितीय स्थान पर रहीं शिप्रा रस्तोगी जी, प्रस्तुत है उनकी रचना, शीर्षक है ’मेरी यादों का गुल्लक’....
मेरी यादों के गुल्लक में
बहुत सारे पैसे है
पूरा गुल्लक ठसाठस
भरा हुआ है
दस पैसे की रेजगारी जैसी
बचपन की शैतानियां भरी है
चवन्नी और अठन्नी से भरी
नादानियां अठखेलियाँ है
ये यादों का गुल्लक
भरा हुआ है
बढ़ते उम्र के साथ
नोट बनते गए
एक दो पांच रुपये जैसे
दोस्त मस्ती उमंग
आजादी से घूमना
ये सब यादों के
गुल्लक में पड़ते गए
कॉलेज में आते आते
यादों के गुल्लक में
दस बीस पचास सौ
जैसे सपने ऊंची उड़ान
तारों को समेटने की चाहत
चांद की चांदनी में
महबूब का दीदार
ये सब यादों की
गुल्लक में पड़ते गए
धीरे धीरे नोट बड़े होते गए
सपने सब भूलते गए
ज़िम्मेदारी के दो सौ
पाँच सौ जैसे नोट
गुल्लक में भरते गए
अब अनुभवों और
सिर्फ खट्टी-मीठी यादों
से गुल्लक पूरा भरा
हुआ है
ये गुल्लक जब टूटेगा तो
यादों का खजाना निकलेगा
क्योंकि गुल्लक पूरा
भरा हुआ है ।
तृतीय स्थान प्राप्त किया कविता साव जी ने, आनंद लीजिए उनकी रचना ’वचन’ का...
बिखरे कच बरसते नैन,
हसमुख चेहरा मीठे बैन,
आज भला क्यों दीन हुआ?
बोल री मेरी कविता तू,
क्यों रमणीक विश्व श्री हीन हुआ?
खिलखिला रही मधुवन में कलियां,
फिर उसर क्यों जमीन हुआ?
किस अंधकार में छिपी चंद्रिका?
क्यों श्रृंगार तेरा उड्डीन हुआ?
नैनों से झर झर झरे झरना,
क्यों ले रही तू हिचकियां?
अब तोड़ दे चुप्पी बता मुझको,
क्या छाई तुझपर विपत्तियां?
हो उठा कंठ अवरुद्ध मेरा,
मेरे मुख से निकला ना कोई वाणी।
ढार मार कर रो पड़ी,
क्यों मेरी कविता रानी।
सुन ले ओ मेरे कवि,
मेरी आंखों में तेरा छवि।
ना तू राजा,ना मैं रानी,
मैं करुणा की बेटी हूं।
ना भाए कोई स्वर्ण महल,
ना शीश पर सोने का ताज।
भाए मुझको पर्ण कुटीर,
तृण की हरियाली पर लेटी हूं।
मैं तो तेरी दिन भीखारण,
स्वर्ण महल नहीं लूंगी।
तेरे बदले ओ मेरे कवि,
मैं स्वर्ग भी ठुकरा दूंगी।
साथ मेरा जो छोड़ दिया,
मैं रो रो रैन बिताऊंगी।
तन्हाई में दिलवर मेरे,
चीखूंगी चल्लाऊंगी।
पोछने को आंसू मेरे,
हाथ कौन बढ़ाएगा?
हो नीरव मैं किसी खंडहर में खो जाऊंगी।
भटक गई जो मिथ्या भीमान में।
मुझे सतपथ कौन दिखाएगा?
तू मेरी इच्छा आकांछा,
तू ही अभिलाषा है।
तू ही मेरा श्रृंगार सुहाग,
तुमसे ही मेरी आशा है।
बनकर कोई नवल गीत,
मैं कंठ बस जाऊंगी।
तू छेड़ेगा मन का तार,
संग तेरे मैं गाऊंगी।
है जन्म जन्म का साथ हमारा,
मैं सारे वचन निभाऊंगी।
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