कहते हैं किसी देश या समाज को अगर गुलाम बनाना है तो उससे साहित्य रचने की क्षमता छीन लो। भावनाएं साहित्य में बसती हैं। इंसानों की पूरी बस्ती से साहित्य निकाल दो, उसके बाद उस समाज से भावनाएं धीरे धीरे लुप्त हो जाएंगी। जब हम अपनी भावनाओं को शब्द देना बंद कर देंगे तो वे क्षणिक हो जाएंगी। सामाजिक स्मृति अल्पजीवी होती हैं। इसलिए समाज को जागरूक करने के लिए एवं भौतिक ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए साहित्य का होना आवश्यक है।
अभिषेक (राष्ट्रवादी)
बिलारी मुरादाबाद
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