हमारे देश की सेना दुनिया की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण ताकतों में से एक है। पूरी दुनिया भारतीय सेना की ताकत और देश के लिए उसके बलिदान को सलाम करती है । जब भी समय आया, हमारे सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन पर हमला किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले नौजवानों की संख्या अनगिनत है, लेकिन कुछ नाम ऐसे भी हैं जिनकी मिसालें दी जाती हैं। ऐसा ही एक नाम है देश प्रेम से ओतप्रोत वीर अब्दुल हमीद का । उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ वो कारनामा कर दिखाया जो आज भी एक मिसाल के तौर पर उद्धृत किया जाता है और उनके इस कारनामे से पूरे देश का सर गर्व से ऊंचा हो जाता है। उन्होंने शत्रुओं को अपूरणीय रूप से परास्त किया था।
यह सितंबर 1965 था, जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया। उन दिनों पैटन टैंक को तकनीक के मामले में दुनिया का सबसे बेहतरीन हथियार माना जाता था । लेकिन पाकिस्तान को शयद पता न था कि लड़ाई हथियारों से नहीं बल्कि साहस से जीती जाती है । अब भी पाकिस्तानी सेना प्रमुखों को युद्ध के इस महत्वपूर्ण पहलू को समझने के लिए इतिहास का अध्यन करना चाहिए ।
पाकिस्तान ने 8 सितंबर, 1965 को पंजाब राज्य के खेमकरण में हमला कर दिया । पाकिस्तानी सेना ने पैटन टैंक के साथ भारतीय सीमा में प्रवेश किया। उस समय भारतीय सेना के पास पैटन टैंक का मुकाबला करने के लिए कोई एंटी-टैंक तकनीक नहीं थी। भारतीय सेना के पास आरसीएल प्रकार की बंदूकें थीं। यह एक ऐसा युद्ध था, जिसमें कोई बराबरी का मुकाबला नहीं था । यह हमारे देश के लिए बहुत कठिन समय था । उन दिनों अमेरिका में बने पैटन टैंकों का मुकाबला करने के लिए भारत के पास कोई बड़ा हथियार नहीं था। हालांकि, ऐसे हालात बहादुरों के लिए इतिहास रचने का एक बड़ा मौका होते हैं।
इन निराशाजनक परिस्थितियों में भारतीय सेना के 4 ग्रेनेडियर्स के हवलदार अब्दुल हमीद को अपनी ताकत और क्षमता दिखाने का एक शानदार मौका मिला, जिन्होंने पूरी दुनिया में साबित कर दिया कि युद्ध केवल हथियारों से नहीं बल्कि साहस से भी जीते जा सकते हैं। अब्दुल हमीद ने 8 सितंबर, 1965 को सुबह 9 बजे एक पाकिस्तानी टैंक बटालियन को अपनी बटालियन की ओर आते देखा। उस समय वह आरसीएल बंदूक लेकर जीप में सवार थे और अपने विकल्पों के बारे में सोच रहे थे। बेशक, भारतीय सेना की आरसीएल बंदूकें पैटन टैंकों की एक बटालियन के लिए मुकाबला के लाएक़ नहीं थीं।
वीर अब्दुल हमीद जानते थे कि यह प्रतियोगिता असामान्य थी, इसलिए यहाँ असाधारण साहस की आवश्यकता थी। उन्होंने अपनी आरसीएल बंदूक से पैटन टैंकों पर हमला करने का फैसला किया। पाकिस्तानी टैंकों की नजरों से बचने के लिए उन्होंने अपनी जीप को गन्ने के खेत में छिपा दिया। जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि टैंक उनकी ओर आ रहा है और उनकी शूटिंग रेंज के भीतर है, उन्होंने तुरंत उस पर गोलियां चलाईं और लगातार गोलियां बरसाते रहे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे देश भारत ने कई महान वीरों को जन्म दिया जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और देश को अनेक युद्धों में विजयी बनाया। वीर अब्दुल हमीद उनमें से एक थे । उनकी बहादुरी की कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है । उनकी महान उपलब्धियों के लिए उन्हें देश द्वारा परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था ।
वीर अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धाममपुर में हुआ था और 10 सितंबर, 1965 को पाकिस्तान के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे, जिसके बाद उन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था । वीर अब्दुल हमीद ने अपनी गन माउंट जीप से पाकिस्तान के पैटन टैंक को नष्ट कर दिया था, जिसे उस समय सबसे बड़ा माना जाता था। अब्दुल हमीद 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना में शामिल हुए थे। बाद में उन्हें रेजिमेंट के 4 ग्रेनेडियर्स में तैनात किया गया । कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद भारतीय सेना के 4 ग्रेनेडियर्स में एक सैनिक थे, जिन्होंने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया था।
गौरतलब है कि जब पाकिस्तानी सेना अमृतसर को घेर रही थी और उस पर कब्जा करने की तैयारी कर रही थी, तब अब्दुल हमीद ने पाकिस्तानी सेना को पैटर्न टैंकों के साथ आगे बढ़ते देखा, लेकिन उस समय वीर अब्दुल हमीद ने अपनी जान की परवाह किए बिना टीले के पास अपनी एंटी टैंक गाइडेड जीप खड़ी कर दी और गोले दागकर दुश्मन के कई टैंकों को नष्ट कर दिया। इस से पाकिस्तानी सेना को युद्ध के मैदान में पीछे हटना पड़ा।
1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट करने वाले मातृभूमि के वीर अब्दुल हमीद, परम वीर चक्र, ग्रीष्मकालीन सेवा पदक, रक्षा पदक और फ़ौजी सेवा पदक से सम्मानित वीर अब्दुल हमीद अपने जन्म काल से ही मातृभूमि के प्रति समर्पित रहे हैं। अपनी अनिवार्य शिक्षा पूरी करने के बाद 27 दिसंबर 1954 को वाराणसी आर्मी सेंटर में 20 साल की उम्र में ग्रेनेडियर इन्फैंट्री रेजिमेंट में शामिल हुए। 1962 में जब भारत-चीन युद्ध छिड़ा तो अब्दुल हमीद 7वीं बटालियन इन्फैंट्री ब्रिगेड का हिस्सा थे और उन्होंने चीनी सैनिकों के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी।
1965 का भारत-पाक युद्ध वीर अब्दुल हमीद के लिए शहादत का युद्ध सिद्ध हुआ । 8 सितंबर, 1965 को उन्होंने अमृतसर रोड पर 106 एमएम की तोप के साथ मोर्चा संभाला और 10 सितंबर को पैटन टैंकों से लगातार गोले दागते हुए पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय जवानों की छावनी में घुसना शुरू कर दिया। 8 और 9 सितंबर, 1965 की रात को जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया, तो भारतीय सेना के जवान उसका मुकाबला करने के लिए तैयार थे । 'खेम किरण' सेक्टर के 'अताड' गांव पर अमेरिकन पैटन टैंक' से हमला बोल दिया ।
भारतीय सैनिकों के पास न तो टैंक थे और न ही भारी हथियार, लेकिन मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते-लड़ते शहीद होने की तमन्ना थी । इसलिए भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी पैटन टैंकों का सामना अपनी सामान्य "थ्री नॉट थ्री राइफल्स" और एलएमएमजी से किया । यह उसके सामने एक खिलौने की तरह था । जीप पर बैठे वीर अब्दुल हमीद ने एक-एक कर अपनी बंदूक से फायरिंग शुरू कर दी। उन्होंने पैटन टैंकों के कमजोर बिंदु पर प्रहार किया । उन्हें ऐसा करते देख अन्य जवानों का भी मनोबल ऊंचा हो गया। पाक सेना में भगदड़ मच गई। वीर अब्दुल हमीद ने अपनी "गन माउंटेड जीप" से सात "पाकिस्तानी पैटन टैंक" को नष्ट कर दिया ।
भारत का "अताड गांव" पाकिस्तानी पैटन टैंकों का कब्रिस्तान बन गया, भाग रहे पाकिस्तानियों का पीछा करते हुए एक गोला "वीर अब्दुल हमीद" की जीप पर गिर जाने से वह गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन 9 सितंबर को शहीद हो गए। शहादत की आधिकारिक घोषणा सितंबर को की गई ।
अब्दुल हमीद महज 30 गज की दूरी से टैंक पर आरसीएल की बंदूक से फायरिंग कर रहे थे, जो निश्चित रूप से एक बहुत ही साहसिक कार्य था । उन्होंने तीन पैटन टैंकों को हराया, उनमें से एक को नष्ट कर दिया जबकि दो को अब्दुल हमीद ने पकड़ लिया । यह एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी जिसे उन्होंने पूरा किया था। दो घंटे बाद तीन पैटन टैंकों ने फिर से भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश की । इस बार भी वही कहानी दोहराई गई। अब्दुल हमीद ने इन टैंकों को अपनी जीप के पास आने दिया और फिर एक टैंक को नष्ट कर दिया, जबकि पाकिस्तानी सेना शेष दो टैंकों को छोड़कर भाग गई। इस लड़ाई को ’Battle of befitting reply’ के रूप में याद किया जाता है जहां पाकिस्तानी सेना कम से कम 70 टैंकों को छोड़कर भाग गई थी । जिन्हें बाद में भारतीय सेना ने गन्ने के खेतों से बरामद किया था ।
(आलेख : रमन चौधरी)
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