अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय न केवल पूरे भारत बल्कि उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक, साहित्य, वैज्ञानिक, भाषाई और ऐतिहासिक विकास का सबसे अच्छा उदाहरण है। उन्नीसवीं सदी के अंत में सर सैयद अहमद खान ने देश और राष्ट्र के विकास के लिए जो सपना देखा और उसे साकार करने के लिए जो पौधा लगाया वाह आज न केवल एक विशाल वृक्ष बन गया है बल्कि अंतरराष्ट्रीय संस्था बन गया है। लोग अंधाधुंध इस तनावर, छायादार और परिपक्व विक्ष की छाया का भरपूर फ़ायदा उठा रहे हैं।
यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हाल ही में जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने विश्वविद्यालय के शताब्दी कार्यक्रम में भाग लिया तो वर्चुअली भाषण में अन्य बातों के अलावा, वाक्यांश भी बोला, जो वास्तव में सर सैयद अहमद खान का मिशन और उद्देश्य रहा है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मिनी इंडिया है। इस विश्वविद्यालय में पूरा भारत समाया हुआ। यदि आप कम समय में पूरे देश को देखना और समझना चाहते हैं तो आप भारत की विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों, भाषाओं, रीति रिवाज़ों, बोलियों और वेशभूषा को यहां देख सकते हैं। क्योंकि यह मिनी इंडिया पूरे भारत की सांस्कृतिक, साहित्यिक, भाषाई और भौगोलिक संस्कृति का प्रतीक और केंद्र है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा, समाज में वैचारिक मतभेद होते हैं। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन जब राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की बात आती है, तो सभी मतभेदों को एक तरफ रख देना चाहिए। जब आप इस मानसिकता के साथ आगे बढ़ते हैं तो ऐसा कोई लक्ष्य नही होता जिसे आप हासिल नहीं कर सकते। एएमयू से कई मुजाहिदीन ए आज़ादी निकले। उन सभी के विचार अलग अलग थे। लेकिन जब गुलामी से आज़ादी की बात आई तो सभी के विचार एक दूसरे से जुड़े हुए थे। राष्ट्र के विकास और समाज के विकास को राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।लेकिन हम जब किसी बड़े मकसद के लिए काम करते हैं तो कुछ तत्वों को इससे दिक्कत हो सकती है। उनके अपने हित हैं और उन्हें हासिल करने के लिए वो हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं और हर तरह की नकारात्मकता फैलाते हैं।
पहली बार प्रधानमंत्री ने एएमयू की ऐतिहासिक भूमिका, इसके शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास और स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका पर बहुत अच्छी तरह से प्रकाश डाला है। और सबसे बड़ी बात उन्होंने कही कि अगर भारत में मिनी इंडिया है तो वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी है। यह पूरे अलीग समुदाय के लिए खुशी की बात है। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा था, "एएमयू ने अपने सौ साल के इतिहास में लाखों लोगों के जीवन को छुआ है, संवारा है, तराशा है और वैज्ञानिक सोच दी है। इसने समाज के लिए, देश के लिए कुछ करने का जुनून पैदा किया है।" उन्होंने कहा की एएमयू ने आगे बढ़कर समाज की सेवा में अपनी भूमिका निभाई है।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्वीकार किया कि एएमयू ने विदेशों, विशेषकर मुस्लिम देशों के साथ भारत के संबंधों को सुधारने और मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा में एएमयू की भूमिका भी प्रशंसा की और की आज 35 प्रतिशत छात्राएं विश्वविद्यालय में पढ़ रही हैं जो सराहनीय है। यह ध्यान देने योग्य है कि नरेंद्र मोदी जी 1964 के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में किसी भी समारोह को संबोधित करने पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं।
सर सैयद अहमद ने नई पीढ़ी को बुद्धिमान और विश्वसनीय नेता बनाने, उन्हे प्रतिभाषी और प्रेरित करने के उद्देश्य के तहत संस्था की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य न केवल उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना था, बल्कि शिक्षा के साथ प्रशिक्षण भी देना था। यह भी अच्छी तरह सुनिश्चित किया गया ताकि इसके स्नातक न केवल भारत की सिविल सेवाओं, इंजीनियरिंग और चिकित्सा क्षेत्रों के विभिन्न क्षेत्रों में बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी विशिष्ट रूप से सेवा कर सकें। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्नातक अपनी संस्था और भारत का नाम न चमका रहे हों।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ धार्मिक और समकालीन अध्यनों को जोड़ कर सर सैयद ने इस सेवा को उस तीव्र गति से मुकाबला करने के लिए विचार और मिशन के साथ किया जिस गति से विश्व और प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है। उनका कहना था कि हमें आगे बढ़ने के लिए पहले से तैयारी करनी होगी। भाषा और कला के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है और बहुत कुछ किया जा सकता है।
विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो ख्याति मिली है, वह न केवल विश्विद्यालय के लिए गौरव का स्रोत है बल्कि पूरे देश के लिए सम्मान का स्रोत भी है। इसके अलावा अन्य विश्विद्यालयों और शैक्षिक संस्थाओं के लिए एक प्रोत्साहन का माध्यम। यह देश का संभवतः पहला विश्विद्यालय है जहां ऊर्जा और नवीनीकरण के क्षेत्र में उत्कृष्टता की आवश्यकता को देखते हुए विश्विद्यालय में बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा परियोजना शुरू की गई है और इसका पर्याप्त लाभ मिल रहा है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय देश का एक मात्र ऐसा संस्थान है जिसने इसके खिलाफ़ उठी हर आवाज़ को अपनी ताकत बनाया और देश को ऐसे लोग दिए जिन्हे दुनिया घरेलू और विदेशी स्तर पर आफताब और महताब कहती है, जो देश और दुनिया के विकास के लिए लाभदाई हैं।
आज से 145 साल पहले, कौन जानता था कि 24 मई 1875 को अलीगढ़ शहर के बाहर जिस छोटे मदरसे की आधारशिला रखी जा रही है, न केवल एक मदरसा, बल्कि नई पीढ़ी के भविष्य को उज्जवल करने का एक बड़ा कारनामा और विश्व के लिए एक मशाल सिद्ध होगा।
सर सैयद ने अपनी आंखों से जो सपना देखा था उसका पहला पड़ाव उनके जीवनकाल में सफलतापूर्वक पूरा हुआ और दो साल की छोटी अवधि के बाद 1877 में मदरसतुल उलूम एक राष्ट्रीय स्तर का मोहम्डन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज बन गया था।
1877 में मोहम्डन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज बनने के कुछ समय बाद मोहम्डन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज के पूर्व छात्रों और सर सैयद के दोस्तों ने कॉलेज को एक विश्वविद्यालय में बदलने की योजना बनाना शुरू कर दिया। सर सैयद के जीवनकाल में ही परियोजना का कच्चा खाका तैयार हो रहा था लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों और संसाधनों की कमी के कारण इसे पूरा नहीं किया जा सका।
22 मार्च 1920 को विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार कॉलेज समिति द्वारा विश्वविद्यालय संघ को एक विधेयक प्रस्तुत किया गया, जिसमें शेख मुहम्मद अब्दुल्ला, नवाब सदर यार जंग, डॉक्टर एम ए अंसारी, हकीम अजमल खान, मौलाना हसरत मोहानी सहित कुल 17 सदस्य थे। अगले 23 मार्च, 1920 को विश्वविद्यालय संघ द्वारा विधेयक पारित कर दिया गया।
27 अगस्त 1920 को विश्वविद्यालय संघ द्वारा मोहम्डन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज समिति द्वारा (बिल) देश की विधान सभा, इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल को भेजा गया । जिस पर विधान सभा के सदस्यों द्वारा चर्चा और परामर्श किया गया था, जोकि 9 सितंबर को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया। विधेयक पर बहस के दौरान शिक्षा समिति के सदस्य सर मुहम्मद शफी, खान बहादुर इब्राहिम, हारून जाफर, चौधरी इस्माइल खान और एमएओ कॉलेज के सचिव सैयद मुहम्मद अली ने भाग लिया।
विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए यह विधेयक इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल द्वारा देश के गवर्नर जनरल और वायसराय को भेजा गया था, जो उन्हें 14 सितंबर, 1920 को प्राप्त हुआ था। यह विधेयक सबसे महत्वपूर्ण और विशेष महत्व का है क्योंकि गवर्नर जनरल और वायसराय महामहिम गेरीन जेम्स फोर्ड ने व्यक्तिगत रूप से इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल का दौरा किया और कौंसिल हाल में मौजूद सभी माननीय सदस्यों को संबोधित करते हुए एमएओ कॉलेज के बिल को मंज़ूर किए जाने की घोषणा की।
इस प्रकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय शुरू हुआ। आज विश्वविद्यालय जिस स्थिति में है, उसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। इसके स्नातक न केवल अपने देश भारत में बल्कि पूरी दुनिया में अपने अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये जहां भी हैं खुद को अलीग कहने में गर्व महसूस करते हैं यह भावना किसी भी संस्था की महानता के लिए काफ़ी है।
आलेख : तहसीर अहमद
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