कानपुर : बृजेश श्रीवास्तव। भारत भूमि हमेशा से गुरु शिष्य के रिश्ते के लिए जानी जाती रही है। इस देश में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना जाता है।
कहते हैं कि गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। भगवान राम को गुरु वशिष्ठ के चरणों में बैठकर ही ज्ञान मिला था तो वहीँ श्रीकृष्ण ने भी ज्ञान प्राप्त करने के लिए संदीपनी ऋषि को अपना गुरु धारण किया था।
गुरु शिष्य की यही पवित्र परंपरा वर्तमान समय में तब देखने को मिली जब देश के मशहूर ग्राफोलॉजिस्ट रिशी माथुर अपनी स्कूल की अध्यापिका मिस डायल से मिलने कानपुर पहुँचे।
रविवार 26 मार्च को रिशी माथुर इंदौर से कानपुर मिस डायल के घर पहुँचे और उनके चरण स्पर्श कर अपने को धन्य माना।
रिशी माथुर ने अपने द्वारा अनुवादित कुछ पुस्तकें मिस डायल को भेंट की। 80 वर्ष की हो चुकीं मिस डायल अपने 50 वर्ष पुराने विद्यार्थी को देखकर खिल पड़ीं। उन्होंने अपने हांथों से बड़े प्यार से खाना बना कर अपने विद्यार्थी को खिलाया।
इस दौरान मिस डायल और रिशी माथुर ने अपने जीवन के किस्से और अनुभव एक दूसरे के साथ साझा किए। मिस डायल ने आज भी अपने टीचर होने का फ़र्ज़ निभाते हुए रिशी को ज़िंदगी के बारीक पहलुओं से परिचित कराया।
संवाददाता से बातचीत में रिशी माथुर ने बताया कि कानपुर के हडर्ड इंग्लिश स्कूल में डायल मैम हमें हिंदी पढ़ाती थीं। मैं तब तीसरी-चौथी क्लास में था। तब लगता था कि इम्तिहान में ज़्यादा नंबर लाना और इनाम पाना बड़ी बात है। बाद में समझ में आया कि स्कूल में जो बेहतरीन टीचर मिले, वही असली इनाम थे। आज ज़िंदगी में जो इतनी खुशियों की छांव है, उसके लिए ज़मीन मिस डायल और कुछ दूसरे शिक्षकों ने ही तैयार की थी, क़रीब पचास साल पहले।
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रिशी माथुर ने बताया कि करीब इतनी ही किताबों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने के बाद, बीते रविवार को अंग्रेजी स्कूल के माहौल में हिंदी के बीज बोने वाली डायल मैम के घर जाकर उनके चरण स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह एक अलग तरह की तीर्थयात्रा थी। मिस डायल इस रविवार चर्च नहीं गयीं, लेकिन मेरी तीर्थ यात्रा सफल हो गयी।
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ग्राफोलॉजी के द्वारा हज़ारों स्टूडेंट्स का कैरियर संवार चुके रिशी माथुर ने बताया कि जिनका असर एक उम्र ग़ुज़रने के बाद भी बरकरार रहे, ऐसे टीचर किसी तीर्थ से कम तो नहीं। गुरुजन के बारे में बड़े बड़े लोग बड़ी बातें कह गये हैं। दोहे हैं, गीत हैं। मुझे उनमें से कोई नहीं दोहराना।
मिस डायल ने क्लास में जो पढ़ाया, उससे भी बढ़कर एक अच्छी ज़िंदगी के लिए तैयार कर दिया। बोलने का सलीका- एक-एक स्वर-व्यंजन और उनके उच्चारण के साथ समझौता न करने की सीख। उन्हीं से सीखा कि शब्दों को सही-सही न लिखना एक किस्म का भ्रष्टाचार है और सही उच्चारण न करना एक समझौता। उनकी सीख हमेशा याद रही।
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ग्राफोलॉजिस्ट ने बताया लोग कहते हैं कि हिंदी ने उन्हें गौरव दिया, गरिमा दी। मुझे निडर होकर जीने की हिम्मत दी। ख़ुशियों और प्यार से भरी ज़िन्दगी के लिए तैयार करने वाली मां मिस डायल का शुक्रिया।
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