लंबे समय के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास की लहर देखने को मिल रही है। जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में तीन क्षेत्र शामिल हैं। कृषि, उद्योग और सेवाएं। कृषि क्षेत्र में बागवानी, पशुपालन, मछली पालन और रेशम उत्पादन शामिल है। औद्योगिक क्षेत्र में कई छोटे और बड़े औद्योगिक कारखाने शामिल हैं जबकि सेवा क्षेत्र में पर्यटन और संबंधित होटल, परिवहन आदि सहित विभिन्न सेवाएं शामिल हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का योगदान 55.92 प्रतिशत है, जबकि औद्योगिक क्षेत्र का योगदान 27.90 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र का 16.18 प्रतिशत है। निम्नलिखित ग्राफ जम्मू और कश्मीर के विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को दर्शाता है।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का वर्चस्व था, जिसका अर्थव्यवस्था में पचास प्रतिशत से अधिक का योगदान था। लेकिन इसकी योगदान दर धीरे-धीरे कम हो रही है। कृषि क्षेत्र का योगदान पिछले चालीस वर्षों में 47 प्रतिशत से घटकर 2019 में 16.8 प्रतिशत हो गया है। दूसरी ओर, सेवा क्षेत्र का योगदान लगातार बढ़ा है और विशेष रूप से पर्यटन उच्चतम विकास की राह पर है, जिस पर जम्मू और कश्मीर के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
2011 की जनगणना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की 73 प्रतिशत आबादी सुदूर ग्रामीण और सीमावर्ती इलाकों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और संबद्ध क्षेत्रों पर निर्भर है जिसमें कृषि, बागवानी, पशुपालन, रेशम उत्पादन, हस्तशिल्प, मछली पालन आदि शामिल हैं। जम्मू और कश्मीर की कुल आय में बागवानी का योगदान 7 से 8 प्रतिशत है। इससे 33 लाख परिवार जुड़े हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में 30,000 परिवार जो आर्थिक रूप से वंचित है और जिनके पास जमीन या संपत्ति नहीं है, वे रेशमकारी से जुड़े हुए हैं। पशु पालन जम्मू और कश्मीर में अपनी स्थापना के बाद से जीवन का एक तरीका रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अक्सर मवेशी पालते हैं आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के अनुसार, पशुधन का ग्रामीण आबादी की अर्थव्यवस्था में 34 फीसद और जम्मू व कश्मीर की समग्र अर्थव्यवस्था में 5.53 फीसद का योगदान रहा है। अतिरिक्त आय के अलावा, यह ग्रामीण आबादी को खाद, ईंधन, मांस, दूध, ऊन आदि प्रदान करता है। जम्मू-कश्मीर के हस्तशिल्प दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक रूप से पिछड़े तबके खासकर महिलाएं इस पेशे से जुड़ी हुई हैं।
इस प्रकार, जम्मू और कश्मीर की कुल आबादी का 73 प्रतिशत, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, कृषि क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जो जम्मू और कश्मीर की कुल अर्थव्यवस्था में 16.8 प्रतिशत का योगदान देता है, जबकि शेष 27 प्रतिशत शहरी आबादी उद्योगों और सेवा क्षेत्र से जुड़ी हुई है, जो जम्मू-कश्मीर की कुल अर्थव्यवस्था में 83 फीसद का योगदान देता है। यह स्पष्ट है कि ग्रामीण क्षेत्र बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन से पीड़ित है, जो इन क्षेत्रों के विकास और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
अधिकांश प्राकृतिक और दर्शनीय स्थल दूरस्थ ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित है। जम्मू-कश्मीर का मामला भी कुछ ऐसा ही है। यहां के पर्यटक के लिए आकर्षण सुदूर ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित है। इन स्थानों की सुंदरता और आकर्षक जलवायु के कारण गुलमर्ग, पहलगाम और मुगल गार्डन जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों की तुलना में अधिक पर्यटन क्षमता रखते है। जम्मू और कश्मीर में पाँच सीमावर्ती जिले है जिनमें पुंछ, राजौरी, बारामूला, बांदीपोरा और कुपवाड़ा शामिल हैं। ये सीमावर्ती जिले अपने ऐतिहासिक स्मारकों, पर्वत चोटियों, प्राकृतिक सुंदरता, स्थानीय परंपराओं और प्रसिद्ध संस्कृतियों से समृद्ध हैं जो पर्यटन को बढ़ावा देने और पर्यटकों के आकर्षण के लिए एक दुर्लभ वस्तु साबित हो सकते हैं। हालांकि, ये क्षेत्र सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और यहाँ रहने वाली आबादी का जीवन स्तर निम्न है और रोजगार के अवसर भी कम है। इन जिलों का पिछड़ापन बुनियादी ढांचे और पहुंच की कमी के कारण है। जम्मू और कश्मीर के ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन के अपार संसाधन है। यहां कई प्राचीन मंदिर, मठ, किले, परंपराए और रीति-रिवाज, खान-पान, पहनावा आदि है, जो बेहद प्रभावशाली और प्रचार-प्रसार के लायक हैं। इन क्षेत्रों की प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ हरे-भरे जंगल, बर्फ से ढके पहाड़, नदियाँ, वन्य जीवन, आदि इन स्थानों के मूल्यों और स्थिति में अत्यधिक वृद्धि करते हैं।
किसी भी देश और राज्य का विकास उसके शासकों के मजबूत इरादों से ही संभव है। इसी दृढ इच्छाशक्ति से घाटी में भी विकास के रास्ते खुल रहे हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे व्यक्ति है जो कार्य करने में विश्वास करते हैं घोषणाओं में नहीं। केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को घोषणा की थी कि जम्मू-कश्मीर और लदाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा। इससे पहले, जम्मू और कश्मीर के पास धारा 370 के तहत विशेष अधिकार थे जिसके तहत उसका एक अलग झंडा और एक अलग कानून था। रक्षा, विदेशी मामलों और दूरसंचार को छोड़कर सभी कानूनों को सहमति की आवश्यकता नहीं थी। कश्मीरी लोगों को दोहरी नागरिकता प्राप्त थी लेकिन बाहरी लोग कश्मीर में जमीन नही खरीद सकते थे।
बाहरी लोगों के लिए कश्मीर में निवास और व्यापार पर प्रतिबंध ने घाटी को विकास की दौड़ में पीछे छोड़ दिया था। जब दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होगी तो कोई भी व्यक्ति अधिक समय तक सिद्धांतों और आदशों का पालन नहीं कर पाएगा। कश्मीरी युवाओं के जत्थे के आतंकवादी बनने या पत्थरबाजों की फौज के पीछे भूख, कठिनाई और गरीबी का तर्क था।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को राष्ट्रीय धारा में शामिल करने और कश्मीरी लोगों को सम्मान के साथ जीने का मौका देने के लिए धारा 370 को निरस्त करने का फैसला किया। संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए गृह मंत्रालय ने कहा कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद मात 34 बाहरी लोगों ने कश्मीर में जमीन खरीदी है, उद्योग और वाणिज्य विभाग और नागरिक उड्डयन विभाग के प्रधान सचिव रंजन प्रकाश ठाकुर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, बदले माहौल में सऊदी अरब की तीन कंपनियां यहां भारी निवेश कर रही है। उनमें से, ई-आर ग्रुप जम्मू में प्रदर्शनी मैदान और श्रीनगर में बादामी बाग के पास दो बहुउद्देश्यीय आई टी टावर का निर्माण करेगा। इन टायरों में सभी तरह की कंपनियों के कार्यालय स्थापित किए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर में उद्योग लगाने के लिए भूमि आवंटन की जिम्मेदारी तय की गई है। इसके लिए शपथ लेनी पड़ती है। मेरिट कम चॉइस के आधार पर जमीन आवंटित की जा रही है। जिस उद्देश्य के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया है यदि वह पूरा नहीं होता है तो आवंटन निरस्त कर दिया जायेगा।
कश्मीरी जनता भी अब यह महसूस कर रही है कि अनुच्छेद 370 वास्तव में उनके लिए प्रगति का संकेत नहीं था बल्कि गुलामी की एक जंजीर थी। यह धारा आतंकवाद और अलगाववाद का प्रतीक थी। मुट्ठी भर प्रभावशाली कश्मीरी ही इस धारा के तहत दिए गए विशेषाधिकारों का आनंद ले रहे थे, अन्यथा 370 घाटी के अधिकांश लोगों के लिए किसी परेशानी से कम नहीं थी। आज घाटी में चारों दिशाओं में विकास हो रहा है। भारत के अन्य राज्यों की तरह कश्मीर भी तेजी से विकास और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। सभी वर्ग के लोग लाभ उठा रहे हैं।
5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को खत्म हुए चार साल हो जाएंगे। इस दौरान कश्मीर में कई बदलाव हुए हैं, मसलन लोगों के मिजाज के साथ-साथ प्रशासन का भी मिजाज बदला है और आतंकियों का साथ देने वालों की तो खैर नहीं है। आतंकवाद के अभिशाप और आतंकियों के नापाक इरादों की पहचान चुके कश्मीरी युवा धीरे-धीरे आतंकवाद से बचकर काम पर लौट रहे हैं। ज्यादातर कश्मीरी युवा देश की सेवा के लिए भारतीय सेना की नौकरी को तरजीह दे रहे हैं। 70 साल तक कश्मीर घाटी के लोग अपने अधिकारों से वंचित रहे, 370 हटने के बाद उन्हें वो सारे अधिकार मिल रहे है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक 370 हटाए जाने के बाद 890 केंद्रीय कानून लागू किए गए हैं। डॉ. अंबेडकर ने देश भर के अनुसूचित जाति और जनजाति की जो उपहार दिया, वह अब जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी मिलेगा।
आलेख : तहसीर अहमद
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