नई दिल्ली : पुनीत माथुर। राजस्थान के बाड़मेर जिले के गांव जसोल में पति पत्नी ने एक साथ संसार छोड़ने का निर्णय लिया है। जैन समाज की सबसे पवित्र संथारा प्रथा ग्रहण करने का यह पहला मौका है ।
83 वर्षीय पुखराज संकलेचा और उनकी 81 वर्षीय पत्नी गुलाबी देवी दोनों ने एक साथ संथारा ग्रहण किया है। कुछ दिन बाद परिवार के ये दो सबसे वरिष्ठ सदस्य संसार छोड़ने वाले हैं।
परिवार के एक सदस्य के अनुसार, पुखराज संकलेचा व उनकी धर्मपत्नी गुलाब देवी ने संथारा लिया है। पुखराज संकलेचा का संथारा पूरा हो गया है और उन्होंने देह त्याग दिया है साथ ही उनकी धर्मपत्नी गुलाब देवी का संथारा जारी है।
दरअसल 10 साल पहले जब गुलाब देवी की दोस्त ने दीक्षा ली थी तभी उन्होंने तय कर लिया था कि दीक्षा के 10 वर्ष पूरे होने पर वह भी दीक्षा लेंगी लेकिन परिवार के लोगों ने उन्हें संथारा लेने से रोका हुआ था।
पति पुखराज का संथारा का कोई विचार नहीं था लेकिन 7 दिसंबर को पुखराज संकलेचा को हार्ट अटैक आ गया। उन्हें जोधपुर के निजी अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन कोई चमत्कार ही था कि 83 वर्ष की उम्र वो 16 दिसंबर को एकदम स्वस्थ होकर घर लौट आए।
27 दिसंबर को उन्होंने खाना और दवा छोड़ दी और कहा कि मैं अब संथारा पर हूं। उन्हें सुमति मुनि के सानिध्य में संथारा दिलाया गया। उनकी धर्मपत्नी गुलाब देवी ने भी भोजन पानी छोड़ दिया। लेकिन इसी दौरान तेरापंथ धर्म के आचार्य महाश्रमण आने वाले थे इसलिए उन्होंने तीसरे दिन पानी लेना शुरू कर दिया। 6 जनवरी को आचार्य महाश्रमण ने उन्हें संथारा ग्रहण करवाया।
जैन धर्म के इतिहास में यह पहला अवसर बताया जा रहा है जब पति पत्नी ने एक साथ सालों जीवन बिताकर संथारा ग्रहण किया हो।
बता दें कि जैन धर्म में संथारा प्रथा (संलेखना) सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है। जैन धर्म में इस तरह शरीर त्यागने को बहुत पवित्र गति माना जाता है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद करके खाना-पीना त्याग देता है।
जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संथारा भी कहा जाता है।यह प्रथा जैन समाज की सबसे पवित्र मानी जाती है।
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