2022 अलविदा कह गया है और 2023 का दुनिया भर में स्वागत हो रहा है। हर वर्ष की तरह इस साल भी हम उम्मीद करते हैं आप कोई नया रसोलूशन लेंगे और कोई नया सपना संजो कर उसे साकार करने के प्रयास करेंगे। हम कामना करते हैं कि नववर्ष 2023 में आपकी हर इच्छा पूरी हो, आप इसी तरह खिलखिलाते रहें एवं ये नववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए सुख एवं समृद्धि लेकर आए।
जीवन को देखने का कवि और शायर का नजरिया कुछ अलग होता है, आज हम लाए हैं ऐसी ही तीन रचनाएं जो नववर्ष को बहुत सुंदरता से प्रस्तुत कर रही हैं....
कवयित्री उषा शर्मा जी, जामनगर, गुजरात |
”नववर्ष आगमन”
नववर्ष आगमन पर जन- जन को यही है संदेश,
नया साल मनाएं सुखद सुंदर हो सबका परिवेश।
पहली जनवरी से हमें करना जंक फूड से परहेज,
अंग्रेजी हर दम बस बोलकर नहीं बनना है अंग्रेज।
भूले नहीं संस्कृति अपनी,कर आधुनिकता की दौड़
पैर छूना प्रणाम न भूलें, हाय हैलो की करके हौड़।
बदतर होते जा रहे युवा पीढ़ी में सहनशील जज़्बात,
प्रतिभा का करे उपयोग,चारित्रिक मर्यादा के साथ।
सद्भावना की उज्जवल भोर का हिय में हो आगाज़,
राष्ट्र सर्वोपरि भावसृजन हों,परोपकार देशहित काज।
हम सभी के लिए मंगलमयी रहे यूँ आगमन नववर्ष,
घर घर पूजा पाठ हों , जन जन में उपजे प्रेम सहर्ष।
बह रही सर्द हवाएं, सर्दी ने सबकी कंपकंपी बढ़ाई,
समस्त राष्ट्र को नववर्ष की, देते हम हार्दिक बधाई।
कवयित्री प्रियंका झा, चंपारण, बिहार |
"नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा"
धूमिल हैं आशाएं सारी,
बने हुए हैं सब व्यापारी
दिल की दौलत बेच रहे हैं
कैसी है ये दुनियादारी
माना अब तक कष्ट मिला है
नहीं एक भी फूल खिला है
कितना कुछ हम रोज़ सहे हैं
अच्छे अनुभव नहीं रहे हैं
फिर भी ये विश्वास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
कितनी ठंडी रातें हैं ये
कांप रहे हैं हर अंग हमारे
घर है, बिस्तर, गर्म रजाई
फिर भी जीते आग सहारे
लेकिन कैसे रहते हैं वो
जाड़ा कैसे सहते हैं वो
फुटपाथों पर बिन चादर के
सोते हैं जो बिन आदर के
यदि उनका आवास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
तन मन के ये कच्चे कितने
भीख मांगते बच्चे कितने
इनकी भी है भारत माता
लेकिन जो हैं बने विधाता
लूट लूट के खायेंगे ही
पैसा पैसा गायेंगे ही
हक सबका ये मारेंगे ही
भूखे नंगे हारेंगे ही
कैसे कह दूं आस रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
बेटी को बोझ ना मानेंगे
बेटा सा इनको जानेंगे
बेटी की सच्ची कीमत को
जब लोग यहां पहचानेंगे
जब नहीं भ्रूण हत्या होगी
जब सुधरेंगे मन के रोगी
पढ़ने का जो अवसर देंगे
मज़बूत इसे भी पर देंगे
उड़ने को आकाश रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
देकर खुशियों की सौगातें
थे कष्ट सभी लेनेवाले
रोज़गार ही खाते हैं ये
थे रोज़गार देने वाले
जाति धर्म की बात करेंगे
खेलेंगे रिश्ते नातों से
सोच रही हूं कब तक भाई
यूं बातों से पेट भरेगा
नहीं अगर उपवास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
नए नोट लेकर भी देखो
जनता त्रस्त हुई है कितनी
नए साल में क्या उम्मीदें
हो जायेंगी पूरी अपनी
नए साल में लेकर यूं तो
वही पुराना गम जायेंगे
उम्मीदों के पंख जलेंगे
या मंज़िल तक हम जायेंगे
जो भी हो कुछ पास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा ।।
जिसकी लाठी भैंस उसी की
जिसकी सत्ता ऐश उसी की
कब तक दौर चलेगा बोलो
वक्त आ गया है मुंह को खोलो
कब तक अत्याचार सहोगे
होकर के लाचार रहोगे
हक अपना जो जान गए तो
खुद को भी पहचान गए तो
सदा समय ही दास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
खुद पर जब विश्वास रहेगा
नया वर्ष कुछ ख़ास रहेगा।।
ग़ज़लकार पुनीत कुमार माथुर ’परवाज़’ |
”नए साल में”
रूठना और मनाना नए साल में,
प्यार ऐसे जताना नए साल में।
कितना तरसा हूं मैं इक अदा से तेरी,
अब तो चेहरा दिखाना नए साल में।
तोड़ कर बेड़ियां सब चले आओ तुम,
छोड़ कर फिर न जाना नए साल में।
दिल दुखे ऐसी बातों को क्या सोचना,
जो हुआ भूल जाना नए साल में।
तल्खियां भूल कर हो शुरुआत फिर,
दिल को दिल से मिलाना नए साल में।
हर तरफ बस तुम्हारे ही चर्चे चलें,
ऐसा कुछ कर दिखाना नए साल में।
कितनी गज़लें कही हैं तुम्हारे,
तुम उन्हे गुनगुनाना नए साल में।
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