आज पूरा देश भारतीय इतिहास में तीन बार प्रधानमंत्री रहे भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन मना रहा। 

अटल जी एक कुशल राजनेता थे, उनके भाषणों का ऐसा जादू रहा कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते थे। उनके व्याख्यानों की प्रशंसा संसद में उनके विरोधी भी करते थे। उनके अकाट्‍य तर्कों का सभी लोहा मानते हैं। उनकी वाणी सदैव विवेक और संयम का ध्यान रखती रही। बारीक से बारीक बात वे हँसी की फुलझड़ियों के बीच कह देते थे। उनकी कविता उनके भाषणों में छन-छनकर आती रहती है।

अटलजी का कवि रूप भी शिखर को स्पर्श करता है। सन् 1939 से लेकर अद्यावधि उनकी रचनाएँ अपनी ताजगी के साथ टाटक सामग्री परोसती आ रही हैं। कविरूप में वो युगानुकूल काव्य-रचना करते रहे। वे एक साथ छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार रहे।

अटल जी की जयंती पर आज प्रस्तुत है चंपारण (बिहार) की युवा एवं प्रतिभाशाली कवयित्री प्रियंका झा जी की ये बहुत सुंदर व भावपूर्ण रचना ”खड़ा रहा अटल वहीं”....

"खड़ा रहा अटल वहीं"

वो ज़िंदगी की दौड़ में

रुका नहीं, झुका नहीं

वो सत्य की मशाल ले

खड़ा रहा अटल वहीं.....


वो आंधी, मेघ, धूप में

अडिग रहा, थमा नहीं

फ़ौलाद सा, डटा रहा

वो सत्य की मशाल ले

खड़ा रहा अटल वहीं....


जब धर्म की राह में

संग चला कोई नहीं

अकेले ही डटा रहा

वो सत्य की मशाल ले

खड़ा रहा अटल वहीं....


वो देश के सम्मान में

आन, बान, शान में

झुका नहीं, डरा नहीं

वो सत्य की मशाल ले

खड़ा रहा अटल वहीं....


वो रोग, कष्ट, घनेर में

अशक्त हुआ कभी नहीं

वो दृढ़ रहा, बुझा नहीं

वो सत्य की मशाल ले

खड़ा रहा अटल वहीं

खड़ा रहा अटल वहीं.....

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