उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उनकी सरकार में मंत्री दानिश आज़ाद अंसारी

पिछड़े मुसलमान एक ऐसा विषय बन गए हैं जो मीडिया प्लेटफॉर्म से लेकर रैलियों और सम्मेलनों तक हर जगह गूंजता है। हर किसी की जुबान पर यही सवाल है कि क्या बीजेपी मुसलमानों में सेंध लगाने जा रही है. आजकल इस विषय पर मीडिया में काफी चर्चा हो रही है। मुख्यधारा का मीडिया ऐसा माहौल बना रहा है जैसे भाजपा रातोंरात पिछड़े मुसलमानों की सबसे उदार पार्टी बन गई है और पिछड़े मुसलमान उनके पास आ रहे हैं। इससे पहले कई अन्य पार्टियों के लिए भी ऐसा ही माहौल बनाया जा चुका है। पिछड़े वर्ग से जुड़े एक लेखक ने कुछ दिन पहले एक प्रमुख हिंदी अखबार में लिखा था, "अब जब प्रधानमंत्री ने पिछड़े मुसलमानों की तरफ हाथ बढ़ाया है तो इस समाज के लिए भी यह जरूरी हो जाता है कि वह भी अपना हाथ बढ़ाये।

दरअसल, इसी साल जुलाई में हैदराबाद में बीजेपी कार्यकारिणी को दो दिवसीय बैठक हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को गैर-हिंदू समाज के उत्पीडित समुदायों तक पहुंचने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा कि सरकार की गरीब हितैषी नीति से सभी शोषित और वंचित तबके को फायदा हुआ है, राशन, सार्वजनिक गैस, सरकारी आवास और अन्य योजनाओं का लाभ सभी को मिला है। इसलिए पार्टी को पिछड़े मुसलमानों को जोड़ने के लिए कदम उठाने चाहिए। हालांकि, मोदी ने पछड़े मुसलमानों को जोड़ने के बारे में न तो प्रेस से बात की है और न ही उन्होंने इसके में ट्रीट किया है, जैसा कि वह अक्सर अन्य मुद्दों पर करते हैं। न ही उन्होंने किसी रैली के दौरान किसी पिछड़े मुसलमान का नाम लिया है, जैसा कि वह अक्सर दलित, आदिवासी, पिछड़ा, गरीब के नाम से पुकारते हैं, लेकिन फिर भी एक सन्देश गया कि बी. जे. पी. पिछड़े मुसलमानों का करीब लाना चाहती है।

मंडल राजनीति के उदय के बाद पिछड़ा शब्द काफी लोकप्रिय हो गया। प्रधानमंत्री के बयान को हाईकमान से संकेत मानकर उत्तर प्रदेश बीजेपी माइनोरिटी फ्रंट ने प्रधानमंत्री की सलाह पर काम करना शुरू कर दिया है. मोर्चा ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा है कि वे पिछड़े मुसलमानों के बीच अपना दायरा बढ़ाने के लिए कई योजनाएं बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, वे पिछड़े मुसलमानों के बीच जाकर यह बताना चाहते हैं कि मोदी सरकार की नीतियों से उनके सहित सभी कमजोर वर्गों को लाभ हुआ है। वह पिछडे मुसलमानों को भी आश्वस्त करना चाहते हैं कि उन्हें पार्टी के भीतर अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। मोर्चा का यह भी दावा है कि पार्टी की अल्पसंख्यक इकाई में पिछड़े मुसलमानों को सबसे अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है। इसके अलावा, मोर्चा अब्दुल हमीद की जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ बड़ी बहादुरी का परिचय दिया था और उन्हें परम वीर चक्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कहा जाता है कि वीर अब्दुल हमीद मुस्लिमों के पिछड़े समुदाय इदरीसी बिरादरी से ताल्लुक रखते थे।

यहां यह जानना जरूरी है कि पिछड़े मुसलमान कौन हैं? पिछड़े मुसलमान अपने समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग हैं, जिनकी आबादी कुल मुस्लिम आबादी का बहुमत है। दलित, आदिवासी, पिछड़े मुसलमानों को पिछड़ा मुसलमान कहा जाता है। मंडल राजनीति के उदय के बाद पिछड़ा शब्द काफी लोकप्रिय हो गया। भारतीय समाज की मुख्य कठोर वास्तविकता जाति आधारित असमान समाज है, जहाँ दलितों, आदिवासियों और पिछड़े समुदायों पर ऊँची जातियों का वर्चस्व रहा है। पिछड़े मुसलमान वे हैं जिन्होंने जाति असमानता से छुटकारा पाने के लिए इस्लाम धर्म अपनाया, लेकिन मुस्लिम समाज के उच्च जातियों द्वारा उन्हें समान दर्जा नहीं दिया गया। कसाब, चूड़ीहार, धोबी, नट, मदारी मेहतर, मेरियासिन, मेरिश्कर अंसारी, रंगरिज रेन इदरसी या दर्जी, साईं जैसी जातियां पिछड़े मुसलमान है। मंडल आयोग ने दर्जनों पिछड़ी जातियों को ओबीसी आरक्षण की श्रेणी में शामिल कर क्रांतिकारी कार्य किया था, पिछड़ी जातियों में अंसारी की बड़ी आबादी बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अंसारी समाज से दानेश आजाद अंसारी को राज्य मंत्री बनाया है ताकि अंसारी समाज और अन्य पिछड़ी जालियां भाजपा की ओर आकर्षित हों। 2024 के आम चुनावों को देखते हुए, उन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।

यह पहली बार नहीं है कि पिछड़े मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने का सवाल उठा है। इससे पहले भी पिछड़े मुसलमानों के बीजेपी में शामिल होने की बात उठ चुकी है। साथ ही 2017 में उत्तर बिहार के एक बीजेपी नेता ने दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में मुस्लिम रैली का आयोजन किया था, जिसमें बीजेपी के बड़े मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी को भी आमंत्रित किया गया था। इस रैली में पिछड़े मुसलमानों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने दावा किया कि पिछड़ा आयोग की संवैधानिक दरजा मिलने के बाद उन्हें और अधिक अधिकार प्रदान किए जाएंगे।

इसमें कोई शक नहीं कि यूपी और बिहार में कई राजनीतिक दल मुसलमानों और खासकर पिछड़े मुसलमानों के सहारे सत्ता की सीट पर पहुंचे, बिहार में लालू प्रसाद यादव की लोकप्रियता पिछड़े मुसलमानों से थी और आज तेजूसी यादव और नीतीश कुमार की लोकप्रियता पिछड़े मुसलमानों के कारण ही है और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक का बोल बाला था तो वह भी पिछड़े मुसलमान के कारण था और आज भी समाजवादी पार्टी का अस्तित्व पिछड़े मुसलमानों की वजह से है, लेकिन पिछड़े मुसलमानों ने खुद अपनी पहचान स्थापित करने की चिंता नहीं की। मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी और अब्दुल कय्यूम अंसारी ने पिछड़े मुसलमानों के कल्याण के लिए आंदोलन शुरू किए लेकिन पिछड़े मुसलमान खुद उन्हें भूल गए। अशफाक हुसैन अंसारी, नईमुल्ला अंसारी, एजाज अली अंसारी, अख्तर अंसारी आदि ने पिछड़े मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से जगाने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रभावी परिणाम नहीं निकला।

उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने मुसलमानों और पिछड़े मुसलमानों का नाम लेने से परहेज किया ताकि हिंदू नाराज न हों और स्थिति यह हुई कि जिसे खुश करने की कोशिश की जा रही थी वे साथ आए ही नहीं अब बीजेपी पिछड़े मुसलमानों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है, इसलिए पिछड़े मुसलमानों के राजनेता इस मौके का फायदा उठाना चाहते हैं, उनका मानना है कि पिछड़े मुसलमानों को खुद आगे आना चाहिए और जागरूकता अभियान चलाना चाहिए और यह मौका नहीं छूटना चाहिए।

यह सच है कि इस्लाम में जाति, ऊंच-नीच की कोई अवधारणा नहीं है, लेकिन पिछड़ापन एक सामाजिक समस्या है. धार्मिक समस्या नहीं है। इसलिए भारत के पिछड़े मुसलमानों का पिछड़ेपन के अँधेरे से बाहर निकालने का प्रयास सभी को करना चाहिए। भारत में कमजोर वर्गों को पिछड़ेपन के जाल से बाहर निकालने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में जाति व्यवस्था सबसे बड़ी बाधा है। 90 के दशक में मंडल राजनीति ने सभी पिछड़े समुदायों को इस तरह जगाने का काम किया कि पिछड़े मुसलमानों तक जागरुकता की लहर दौड़ गई जिसके फलस्वरूप सभी दलों ने पिछड़े समुदायों पर ध्यान देना शुरू कर दिया और अपने संगठनों में पिछड़े समुदायों को भागीदारी देने और टिकटों का वितरण करने लगे।

आज अगर बीजेपी पिछड़े मुसलमानों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है तो इससे इन वंचित तबकों को जरूर फायदा होगा। मंडल की राजनीति ने न केवल पिछड़े मुसलमानों में राजनीतिक जागरूकता पैदा की बल्कि सामाजिक जागरूकता भी पैदा की, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी काफी सुधार हो रहा है। आज अगर राजनीति से हट कर बात करें तो पिछड़े मुसलमान भी पहले की तुलना में विकास और समृद्धि के पथ पर हैं। अर्थव्यवस्था किसी भी समाज की रीढ़ होती है। एक वर्ग जो आर्थिक रूप से मजबूत हो चाहे वह नौकरी या व्यापार के माध्यम से हो, या तिजारत कि माध्यए से, उसके लिए जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति करना आसान हो जाता है। बेहतर और समान वातावरण के कारण जहां सभी वर्गों ने प्रगति की है, वहीं पिछड़े मुस्लिम समुदाय भी समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं। शिक्षा पर भी ध्यान दे रहे है। राजनीति में भागीदारी हासिल करने का प्रयास उनकी जागरूकता का परिणाम हैं। यदि सत्ताधारी दल पिछड़े समुदायों के प्रति रुचि दिखाते हैं और इसके जवाब में पिछड़े मुसलमान उन की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं, तो इसे देश के विकास और समृद्धि की दिशा में एक और कदम माना जाना चाहिए।

(आलेख : मोहम्मद इस्माइल)

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