शाह मोहम्मद सईद इस्माइल सूरत शहर की चकाचौंध से दूर आदिवासी बहुल मांगरोल तहसील क्षेत्र में आने वाले झाखरदा गांव के प्राथमिक विद्यालय में पिछले 12 साल से प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं इस स्कूल में पढ़ने के लिए आने वाले हिंदू बच्चों को भगवद गीता और मुस्लिम बच्चों को कुरान-ए-शरीफ पढ़ाया जाता है।
अध्यापन के पहले दिन से ही वह स्कूल आने वाले आदिवासी और गरीब बच्चों में अच्छी शिक्षा और मूल्यों को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। वह अपने प्रयासों में कुछ हद तक सफल भी हुए हैं। इस स्कूल में कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चे पढ़ने आते हैं।
गांव में हिंदू मुस्लिम समाज की आम बस्ती है और इस छोटे से स्कूल में हिंदू मुस्लिम समुदाय के 71 बच्चे पढ़ने आते हैं। दोनों धर्मों के बच्चों को देश और दुनिया की कई भाषाएं भी सिखाई जा रही है।
सातवीं कक्षा की छात्रा नेहा नयन वसावा का कहना है कि उन्हें चीनी, रोमन, तमिल, हिंदी, उर्दू और गुजराती जैसी भाषाएं सिखाई गई हैं। प्रतिदिन भोजन करने से पूर्व सभी बच्चे भगवद गीता का एक पन्ना पढ़ते हैं। प्रत्येक रविवार को वे गांव में एक घर चुनते हैं, जहां वे भगवद गीता के 2 पृष्ठ पढ़ते और सुनाते हैं। इस्माइल कहते हैं कि भगवद गीता पढ़ने से बच्चों की याददाश्त तेज हो जाती है।
कहा जाता है कि शिक्षक का कोई धर्म या जाति नहीं होती और इस्माइल इस बात को सच साबित कर रहे हैं, संभवत यह गुजरात का पहला स्कूल होगा जहां एक मुस्लिम शिक्षक बच्चों में गीता के ज्ञान के साथ-साथ मूल्यों का भी विकास कर रहा है।
इस्माइल ने कहा कि वह पिछले 12 साल से इस प्राथमिक विद्यालय में पढ़ा रहे हैं। स्कूल में बच्चों को मूल्यों के साथ शिक्षित किया जाता है। भगवद गीता हर बच्चे को दी गई है। यह पिछले 12 सालों से पढ़ाया जा रहा है । अब इस्माइल को सरकार द्वारा भगवद गीता सिखाने की अवधारणा पसंद आई।
वह कहते हैं कि हम 2012 से सभी स्कूली बच्चों को गीता पढ़ा रहे हैं, बच्चे अपने घर पर हर दिन गीता का एक पृष्ठ पढ़ते हैं और अगले दिन अपने सहपाठियों को सुनाते हैं और समझाते हैं।
इस्माइल का कहना है कि जब वह पहली बार आए थे तो गांव में एक भी गीता नहीं थी । वें याद करते हैं, "मैं इतने सारे लोगों के लिए गीता की प्रतियां लाया था, यहां तक स्कूल का सवाल है, बच्चों को 1 से कक्षा 5 तक के अध्ययन से परिचित कराया जाता है।
गीता पढ़ने के लाभों के बारे में सईद कहते हैं कि यह अच्छे संस्कार विकसित करने में मदद करता है गांव के सरपंच जगदीश वसावा ने कहा कि बच्चे अब अपने तरीके से जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं।
इसी तरह से बंगाल के एक कालेज में 9 साल के अनुभव के बाद 3 साल पहले संस्कृत पढ़ाने के लिए सहायक प्रोफेसर के रूप में बेलूर में रामकृष्ण मिशन विद्या मंदिर में शामिल हुए रमजान अली ने कहा कि छात्रों और संकाय सदस्यों द्वारा उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
"प्रधानाचार्य स्वामी शास्त्रानंदजी महाराज" और सभी ने मेरा स्वागत किया। महाराज ने मुझे बताया कि मेरी धार्मिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं थी, भाषा पर मेरी पकड़, मेरा गहन ज्ञान और छात्रों के साथ इसे साझा करने की मेरी क्षमता महत्वपूर्ण थी।
अली ने जोर देकर कहा कि संस्कृत शिक्षक के रूप में उन्हें कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। मुझे कभी नहीं लगा कि मैं संस्कृत का अध्ययन या पढ़ाते समय जगह से बाहर या अवांछित था। इधर, बेलूर कॉलेज में, प्रबंधन ने मेरे आवास की व्यवस्था की है और सुनिश्चित किया है कि मुझे कोई असुविधा न हो। रामकृष्ण मिशन विद्या मंदिर में संस्कृत विभाग के एक छात्र ने कहा कि वह अली की कक्षाओं में भाग लेने के लिए उत्सुक था।
उन्होंने कहा कि एक शिक्षक की धार्मिक पहचान पर सवाल उठाना 'अनुचित' है।
(आलेख : गोपाल चर्तुवेदी)
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