जीवन ही सत्य नहीं है तो जीवन का क्या सत्य हो सकता है। सत्य तो आप हो, पर सारी दृष्यमान नश्वर वस्तुओं को जबरन सत्य माने हुए हो। ऐसे में सब कुछ सत्य या असत्य, सुंदर या बदसूरत, धर्म या अधर्म दिखाई देगा। और जो कुछ भी संसार में दिखाई दे रहा है,सब सत्य प्रतीत होता रहेगा।

जीवन के निश्छल सार को शब्दों में संजोय हुए पढ़िए लोकप्रिय कवियत्री उषा शर्मा जी की ये बहुत सुंदर व सारगर्भित रचना...

एक दिन ये आत्मा पंछी देह पिंजर छोड़ उड़ उड़ जाए, 

सोचकर और चाहकर भी, फिर ये कदम लौटने ना पाए। 

पल-पल तन ने झूठा ये अभिमान बटोरा और बनाया घर, 

पर समय की ताकतों ने तन को आज कर दिया है बेघर। 

काम क्रोध पद मोह लोभ ए जीव!अब कुछ काम ना आए, 

सोचकर और चाहकर भी, फिर ये कदम लौटने ना पाए...... 

ओ मुसाफिर धीर धर ! लौटकर पंछी घर को अब ना आए, 

ध्यान धर ये भी तू, मन प्रकृति हमारी घायल ना होने पाए।

सन्तान हैं हम सृष्टि के तो क्यों न सदा इसका मान  बढाएं, 

सोचकर और चाहकर भी, फिर ये कदम  लौटने ना पाएं.....

कवियत्री उषा शर्मा जी
जामनगर (गुजरात)


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