प्रेम शाश्वत है और सत्य भी। यह सृष्टि का आधारभूत तत्व है। आत्मा की उमंग है। इस एक भावना में बलिदान निहित है, त्याग और समर्पण भी। ऐसी भावना जिसे जताने और बताने की जरूरत नहीं होती। यह प्रदर्शन की चीज नहीं है। प्रेम रूह से महसूस किया जाने वाला अलौकिक और अतृप्त आनंद है।
इसी भावना के बाजारू घालमेल ने विचित्र स्थिति पैदा की है लेकिन नए दौर में यह कुछ हैरत की बात भी नहीं। यों बदलाव भी तो सतत है, शाश्वत है। बाजार का कब्जा सिर्फ प्रेम पर नहीं, इंसानी संवेदनाओं पर है। गनीमत यह है कि मूल भावना बची हुई है, शायद बची रहेगी।
ऐसी ही प्रेम की अनुभूतियों को कागज़ पर उकेरा है कवियत्री व लेखिका ममता चौधरी जी की क़लम ने....
एक रोज साथ टहलते हुए
चाँद ने यूँ ही पूछ लिया-
क्या कोई दीवानी हो तुम भी ?
उसने कहा -ये कैसा सवाल है?
यहाँ हर कोई दीवाना है...
कोई खुद में कैद है
तो कोई किसी खूबसूरत चेहरे पर मरता है,
कोई भूख से लड़ रहा है
तो कोई नींद को तरसता है,
कोई बिखरे सपने सहेज रहा है
तो कोई सपनों की खेती कर रहा है,
बाजार भी लगे हैं...
सपनों के, रूहों के, जिस्मों के,
अजब दीवानगी का आलम है जहाँ में।
तो मेरी दीवानगी पर सवाल क्यूँ?
चाँद अचानक चुप हो गया,
वजह पूछने पर बोला...
हम दोनों का कोई राब्ता है या नहीं
बिना ये जाने ही हम सदियों से हमसफ़र हैं...
इन अनजान, आवारा राहों में।
इन आकाश गंगाओं के बीच
अनगिन सवाल जेहन में लिए,
बेसबब चली आती हो मलिन मुस्कान लिए,
क्या ये दीवानगी नहीं ?
अब चुप होने की बारी उसकी थी,
चुप्पी तोड़ने की गरज से
फिर धीरे से उसने चाँद से कहा,
तुम इस दुनिया की तमाम सांवली लड़कियों से
बेइंतिहा मुहब्बत करना,
इससे दुनिया थोड़ी और रोशन होगी....
चाँद मुस्कुरा कर रह गया
और पहली दफ़ा
उसके कांधे पर हाथ रख पूछ बैठा-
ये आकाशगंगाएं तुम्हारी बोई बेचैनियों का सबब तो नहीं?
चाँद का इतना कहना था कि
उसने अपनी मुठ्ठी कसकर बन्द कर ली....
और कंधे पर रखे उसके बाजू से पोंछ ली अपनी आँखें,
चाँद समझ गया कि सदियों से एक राह से गुजरते हुए भी
हमसफ़र नहीं थे वे,
उसने पहली दफ़ा अपना हाथ
उसके हाथ में थमा दिया,
उन दोनों के हाथ देर तक कांपते रहे...
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