सूफ़ी अरबी शब्द सूफ़ से लिया गया है,  जिसका अर्थ है ऊन । ऊन का उपयोग आमतौर पर कंबल बनाने के लिए किया जाता है । सूफ़ी कंबल इसलिए पहनते हैं क्योंकि इस पोशाक को बहुत ही साधारण और तेर्फे मोहत्यागी का प्रतीक माना जाता है । सूफ़ीवाद का दर्शन बहुत हद तक वेदांत के रहस्य के अनुरूप है और इसका आधार सूफ़ीवाद है । 

जो अल्लाह का ज्ञान है । सूफ़ीवाद के कई मार्ग हैं जिन्हें सिलसिला कहा जाता है जैसे चिश्तिया,   नक्शबंदिया,  कलंदरिया और कादरिया । ये सभी सिलसिले हज़रत अली शेर खुदा कर्रमल्लाहो वजहोहू पर ख़त्म होते हैं । यानी सूफ़ीयों की पूरी चेन हज़रत अली से शुरू होती है । सूफ़ी पथप्रदर्शक हैं जो शरीयत का पालन करके अल्लाह के सेवक के प्रेम के प्रति समर्पित हैं । उनके लिए अल्लाह को प्रसन्न करना पूजा का सबसे अच्छा रूप है । प्रसिद्ध सूफ़ी संत हजरत बेदम शाह वारसी कहते हैं ...

किसे हो इम्तियाजे जलव - ए - यार,

हमें तो आप ही आना नहीं होश ।

इसी सिलसिले में एक और शे'र देखिए ...

पहुंच गया हूं दरे यार तक मु से,

वगर न सब मेरे सजदे इधर उधर होते ।

भारत में मुसलमान आज सूफ़ीयों की शिक्षाओं का परिणाम हैं । उन्होंने स्थानीय भाषाओं में अपने भाषणों से लोगों के दिलों में जगह बनाई । सुल्तानों की तलवारों से इस्लाम नहीं फैला । सूफ़ीयों ने समानता का संदेश दिया । ऊंच नीच का भेद मिटाकर देश में शांति - सौहार्द का संदेश फैलाया और गंगा - जमुनी सभ्यता को बढ़ावा दिया । प्रसिद्ध कवि अल्लामा इकबाल ने शांति और सद्भाव की इस भावना को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है ...

चिशती ने जिस ज़मीं में पैगामे हक सुनाया, 

नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया, 

मीरे अरब को आई ठण्डी हवा जहां से, 

मेरा वतन वही है मरा वतन वही है ।

जन्नत की ज़िन्दगी है जिसकी फ़ज़ा में जीना,

मेरा वतन वही है मेरा वतन वही है ।

वेदांत के हिंदू दर्शन के अनुरूप होने के कारण , यहां के लोग सूफ़ियाना ख्यालात के हैं । और आज भी धर्म या जात से उपर उठकर संपूर्ण सूफ़ीयों के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं । सूफ़ीयों काअस्ताना भारत की गंगा - जमुनी सभ्यता को अपने दिल के करीब रखता है । यहां का रोमांटिक माहौल लोगों को सुकून देने के साथ - साथ जीना भी सिखा रहा है । अलग अलग धर्मों के बावजूद मिलजुल कर जीवन जीने की सीख बुजुर्गों के आसताने दे रहे हैं ।

(विज्ञापन)

आपको पूरे देश में दरगाहें और आसताने देखने को मिलेंगे । पश्चिम में ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसू दरज़, अजमेर में ख्वाजा अजमेरी, दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह , बारांबकी के देवा शरीफ में वारिस अली शाह का भव्य अस्ताना, मारहरा में खानकाह बरकतिया, गोरखपुर में मियां साहिब इमामबाड़ा एस्टेट के संस्थापक रोशन अली शाह और बाद की पीढ़ियों ने देश में शांति और सद्भाव का माहौल बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

कश्मीर घाटी को जन्नत नज़ीर भी कहा जाता है । कश्मीर में बहुत सी दरगाहें और आस्ताने हैं लेकिन कुछ प्रसिद्ध दरगाहों और खानकाहों का उल्लेख ज़रूरी है । डल झील के किनारे स्थित मस्जिद और दरगाह को दरगाह हज़रत बल भी कहा जाता है । लोगों का मानना है कि इस दरगाह में रसूल मकबूल स ० अ ० व ० मूए मुबारक है और इस विशेषता के लिए दरगाह हज़रत बल पूरी मुस्लिम दुनिया में प्रसिद्ध है । इस दरगाह की स्थापना ईरान के हमदान शहर के एक धार्मिक गुरु मीर सैयद अली हमदानी के शिष्यों ने की थी । 

मीर सैयद अली हमदानी कई पुस्तकों के लेखक थे । मीर सैयद अली हमदानी ने मिन्हाज - उल - आरफीन और कसीदा नातिया जद - उल - अकबा जैसी यादगार पुस्तकें छोड़ी हैं । जिसके उर्दू अनुवाद सामने आ चुके हैं । उनके शिष्यों का कश्मीर में वास्तुकला पर बहुत प्रभाव है । कहा जाता है कि सैयद अली हमदानी के 700 शिष्यों ने कश्मीर घाटी में लकड़ी की नक्काशी की कला में महारत पेश की है । 

खानकाह नक्शबंदिया की स्थापना 14 वीं शताब्दी के शेख बहाउद्दीन के शिष्यों और अनुयायियों ने की थी । यह खानकाह कश्मीर के सबसे पुराने सांस्कृतिक स्मारकों में से एक है । कश्मीरी मूल के सुल्तान - उल - अरफीन शेख हमज़ा मखदूम की दरगाह बारामूला में है । ऐसा कहा जाता है कि चक राजाओं के शासनकाल के दौरान शेख हमजा मखदूम ने ऋषि संप्रदाय का प्रतिनिधित्व किया था,  जिसका आगाज़ ख्वाजा ओवैस कर्नी द्वारा हुआ।

दरगाह पीर दस्तगीर को हजरत सैयद अब्दुल कादिर जिलानी के शिष्यों ने बनवाया था । इन दरगाहों और खानकाहों में एक महत्वपूर्ण नाम श्रीनगर के उक्त क्षेत्र के चांद गांव में बाबा क़यामुद्दीन की दरगाह है । लोगों का मानना है कि बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के लिए अकीका करने आते हैं और खुशी - खुशी अपने घरों को लौट जाते हैं ।

संक्षेप में,  देश में भाईचारे के माहौल को बढ़ावा देने में अवलिया - ए - केराम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज भी उनके अस्ताने भावपूर्ण गीतों से लोगों के हृदय में प्रेम का दरिया प्रवाहित कर रहे हैं ।

(न्यूज़ लाइव टुडे के लिए इफ़्तिख़ार अहमद का आलेख)

Share To:

Post A Comment: