इश्क़ से वफ़ावत है, इश़्क ही इबादत है,

दिल्लगी की बातें हैं दिलबरों की आदत है।


साथ आपका मिलना जैसे हो दुआ पूरी,

है करम ख़ुदा का जो हमपे ये इनायत है।


देख कर भी अनदेखा बारहा वो करता है,

इक हसीन चेहरे की ख़ूब ये शरारत है ।


गुफ्तगू अगर ना हो, तन्हा तन्हा लगता है,

मन कहीं नहीं लगता क्या अजब ये चाहत है।


इश्क़ जुर्म है मेरा आप फैसला देना,

आप की दलीलें हैं आपकी अदालत है।


राहे इश्क मुश्किल है फिर भी चल पड़े हैं हम,

इक क़दम पे बेचैनी,इक क़दम पे राहत है।


मुझसे जलने वाले सब साथ हो लिए सारे,

तल्खियाँ उभरती हैं, शायरी इबारत है ।


© पुनीत कुमार माथुर 'परवाज़'

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