माता भवानी शैलपुत्री आ गए तेरी शरण।
कोटि नमन करते तुझे हैं कर रहे सब पूजणम।
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हैं रुप दूजा शील धारिणी और हैं ब्रह्मचारिणी ।
हैं कहाँ तुम सा जगत में कोई धीरज धारिणी।
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चंद्रघंटा चंद्र रूपा है अति मन भावणी।
सज रही माँ शस्त्रों से है हैं जगत की तारिणी।
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है रचयिता सृष्टि की ये रोग दोष विनाशिणी ।
चौथा रूप है कूष्माण्डा भक्तों की दुःख हारिणी।
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पद्मासन में बैठी माता पुष्प कमल विराजिनी ।
कार्तिकेय गोदी विराजे स्कंदमाता सुवासिनी।
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आदि शक्ति की परछाई तप से जन्मी कात्यायनी।
महिषासुर को मार कर ही जो बनी पाप नासिनी।
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देती माता जो भी वर है वो नही जाता खाली।
सातवें दिन कालरात्रि पूजी जाती महाकाली ।
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मन से भोली स्वेत वस्त्र मे सजती है महागौरी।
आठवां है रूप माँ का लगती है सबको प्यारी।
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नौवा रूप है सिद्धिदात्री है बड़ी ही कल्याणी।
इनसे बड़ कर दूजा जग में है नही कोई दानी ।
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हैं ये सागर" करुणा" की जिसका किया वर्णन अभी।
हो गया हो गलती कोई तो माफी मांगती है "कली" ।
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रूप दुर्गा में जग समाया है इन्हीं से ये धरा ।
वंदना करती है" कलिका "खुश रहे ये वसुंधरा।
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रचनाकार करुणा कलिका जी बोकारो स्टील सिटी (झारखंड) |
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