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जय श्री राम मित्रों,

राम कथा लिखना कहूँ, काज नहीं आसान।

राम कृपा ही जानिये, लिखा राम गुणगान।।

अथ श्री महा आनंद रामायण के रचने का सटीक कारण उपयुर्क्त दोहा में स्पष्ट है। दोहा विधा में कोई एक महाकाव्य लिखने/पढ़ने की इच्छा सम्भवत: तब से है, जबसे मैने साहित्य समझने व गढ़ने का कार्य आरम्भ किया। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण काव्य ग्रंथ सर्व प्रथम देव भाषा संस्कृत में लिखा गया..तब आम जन की भाषा संस्कृत हुआ करती थी। 

धीरे  धीरे समय के साथ संस्कृत केवल विद्वानों की भाषा बनकर रह गई।

आम जन से दूर होती संस्कृतमय रामायण का स्थान अवधी में रचित गोस्वामी तुलसी दास कृत रामचरित मानस ने ले लिया। सम्पूर्ण विश्व में तुलसी कृत रामचरित मानस एक वंदनीय व पूजनीय ग्रंथ बनकर रामभक्तो के हृदय के साथ मंदिर का आवश्यक अंग बन गया। तुलसी कृत मानस का वाचन घर घर होने लगा, लेकिन मानस की भाषा बोली अवधी में होने के कारण अवधी न जानने वालो को कथा में प्रयुक्त शब्दों को  समझने में कठिनाई होना स्वाभाविक समस्या मानी जा सकती है। हांलाकि संस्कृत से अधिक सहज अवधी को समझ पाना है।

अथ श्री महा आनंद रामायण रामकथा को और अधिक सहजता से लोगो को जोड़ने का प्रयास मात्र है। इसमें प्रयुक्त भाषा शैली आज के समय बोले जाने वाली खड़ी हिन्दी है, आवश्यकता होने पर उर्दू की शब्दावली का भी आंशिक प्रयोग है। ब्रज वा अवधी के आंचलिक शब्दों से भी दोहो को सजाने का कार्य किया है। भाव यहीं की राम कथा पढने वाला इस पुस्तक को पढ़ने के साथ कथा यात्रा भी करे।

अंत में यहीं कहूंगा की यह इतना सरल और सहज कार्य नहीं है, जितनी सरलता और सहजता से हो गया प्रतीत हो रहा है। इच्छा शक्ति तो सदैव रही लेकिन कभी समय साथ नहीं रहा। जब भी कलम उठाई कोई न कोई अड़चन सम्मुख आ ही गई..फिर मैं दस बीस दोहे से अधिक लिख न सका। मैं समय के बहाव में दो गज बढता... लेकिन समय चार गज पीछे ले जाकर छोड़ देता।

लेकिन कहते है न , यदि मनुष्य अपने शुभ संकल्पों के अधीन होकर कार्य करे तो सफलता निश्चित मिल ही जाती है। मेरे जीवन में कभी जीजिविषा और जीवटता की कोई कमी नहीं रही,जो ठान लिया सो ठान लिया। मेरा अखंड विश्वास रहा है की मेरे शुभ संकल्प के साथ मातु वाग्गेश्वरी सदैव रही। इसी शुभ संकल्पो का परिणाम था कि शनै शनै ही सही किन्तु मेरा संकल्प आकार तो लेनेे लगा था। लेकिन बीच -बीच में व्यवधान अपना खेल कर ही जाते थे, इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ, मेरे द्वारा रचित सीता-राम कथा दोहावली जिसमें लगभग सौ दोहों का संकलन था। मेरी लापरवाही के कारण नष्ट हो गया.....मन में भारी क्षोभ और पीड़ा थी, किसको दोष देता?  कागज पर अंकित शब्द स्याही बह चुके थे...लेकिन जो कुछ अब तक कागज पर लिखा था...वह मन के कागज पर अमिट था।

समग्र शक्ति को एक बार फिर संचित किया. मुझे अच्छी तरह याद है दिन 25 अक्टूबर 2019 धन तेरस का पुनीत त्योहार था,  मुझे जो कुछ मिटा हुआ याद था..पूर्ण इच्छा शक्ति के साथ लिखना शुरू किया। आरम्भ में दस दोहे रोज लिखने का संकल्प लिया इस तरह से एक लक्ष्य तैयार हो गया कि अगले वर्ष 2020 में धन तरस तक राम कथा दोहावली पूर्ण हो जायेगी। 

तब प्रथम दोहा लिखा ....

गण गणपति कर जोड़ कर, पदम नवाऊँ शीश।

राम कथा दोहावली, लिखूँ आज जगदीश।।


नमन करूँ माँ शारदा, रख चरणों में माथ।

कलम लिखे दोहावली, रख दो सिर पर हाथ।।


श्री बजरंगी के बिना, नहीं राम का काज।

हे हनुमत तुलसी समझ,रखना मेरी लाज।।

माँ शारदा की असीम कृपा बरसने लगी , श्री राम गाथा के गूढ़ रहस्य श्री बजरंग बली के आशीर्वाद से दोहो में सहजता से आने लगे। 

इधर धीरे धीरे पूरा विश्व कोरोना के चलते लॉक डाउन की स्थिति में आने लगा। लोगो ने अपनी जान बचाने के लिये स्वयं को अपने परिवार के साथ घरो में कैैद  कर लिया।

मेरे पास भी घर में रह कर कुछ विशेष करने को रहा नहीं।

तब मैने अपनी सम्पूर्ण उर्जा एवम् ध्यान राम कथा दोहावली की ओर लगा दिया। माँ भगवती शारदा के आशीष से जुलाई 2020 तक लंका कांड मेघनाद वध तक की कथा लिख चुका था। लेकिन इस बीच काढ़ा चिकित्सा  के मध्य कोरोना कब होकर चला गया,इसका तब तो पता नहीं चला, लेकिन धीरे- धीरे स्वास्थ गिरने लगा. लेखन की गति धीमी तो जरूर हुई लेकिन थमी नहीं। संजोग से जिस दिन ( 05 अगस्त 2020)  अयोध्या में भूमि पूजन का कार्यक्रम था , रावण का वध  उसी दिन लिखा गया।

अथ श्री महा आनंद रामायण आज आपके समक्ष सम्मान सहित प्रस्तुत करने जा रहा हूँ। इसे प्रकाशित करने का बीड़ा हिंदी श्री प्रकाशन भदोही ने उठाया है।इस पुस्तक में कुल 2008 दोहे व मत्तसवैया छंद है। इसका युद्ध पर्व वीर छंद (आल्हा) में लिखा गया है।

यह पुस्तक लिखने का भाव स्वांत: सुखाय ही है। 

विनीत

पंडित अनित्य नारायण मिश्र "बेबाक"

8800404140

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