" मौसम के अफसाने को "
दूर क्षितिज पर सूरज चमका, सुबह खड़ी है आने को,
धुंध होगी, धूप खिलेगी, वक्त नया है छाने को ...
साहिल पर यूं सहमे-सहमे वक्त गंवाना क्या यारों ,
लहरों से टकराना होगा पार समुंदर जाने को..
पेड़ों की फुनगी पर आकर बैठ गई जो थी धूप जरा ,
आँगन में ठिठकी सर्दी भी आये तो गरमाने को.....
हुस्न -ओ - इश्क पुरानी बातें, कैसे इनसे शेर सजे,
आज गजल तो तेवर लायी सोती रूह जगाने को...
टेढी भौंहों से तो कोई बात नहीं बनने वाली,
मुट्ठी कब तक भींचेंगे हम, हाथ मिले याराने को.....
वक्त गुजरता सिखलाता है, भूल पुरानी बातों सब,
साज नया हो, गीत नया हो, छेड़ नये अफसाने को.....
रचनाकार का एक परिचय |
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