नई दिल्ली: पुनीत माथुर। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को पूछा है कि यह देश में आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की ओर से बनाया गया कानून था। आजादी के 76 साल बाद भी देश में इस कानून की क्या जरूरत है।
अदालत ने यह भी कहा कि संस्थानों के संचालन के लिए ये कानून बहुत गंभीर खतरा है। ये अधिकारियों को कानून के गलत इस्तेमाल की बड़ी ताकत देता है और इसमें उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होती।
चीफ जस्टिस एनवी रमना की तीन जजों वाली बेंच ने कहा है कि राजद्रोह की धारा 124A(राजद्रोह) का बहुत ज्यादा गलत इस्तेमाल हो रहा है। ये ऐसा है कि किसी बढ़ई को लकड़ी काटने के लिए कुल्हाड़ी दी गई हो और वो इसका इस्तेमाल पूरा जंगल काटने के लिए ही कर रहा हो। इस कानून का ऐसा असर पड़ रहा है। अगर कोई पुलिसवाला किसी गांव में किसी को फंसाना चाहता है तो वो इस कानून का इस्तेमाल करता है। लोग डरे हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश निर्धारित किए जा सकते हैं। उन्होंने प्रावधान की वैधता का बचाव किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे वक्त में जब पुराने तमाम कानूनों को हटाया जा रहा है, तब इसकी क्या जरूरत है।
जानिए क्या है राजद्रोह कानून :
भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति शब्दों, लेखन, चिह्नों, दृश्य माध्यम या फिर अन्य किसी माध्यम से भारत में कानून के तहत बनी सरकार के खिलाफ विद्रोह को भड़काता है तो उसे उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है।
इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इस धारा के तहत यदि कोई अपराध करता है तो वह गैर-जमानती होगा। बता दें कि 1962 में केदारनाथ यादव बनाम बिहार सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को बनाए रखा था।
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