(फोटो साभार : रचना हुसैन)

 

एक ग़ज़ल .....


उनके दिल से निकाले गए, 

फ़िर न मुंह में निवाले गए।


जिसको चाहा मिला वो नहीं,

रोज़ मंदिर शिवाले गए।


दर्द हमको जो उनसे मिले, 

वो न हमसे संभाले गए ।


सांप थे, वो तो डसते मगर, 

आस्तीनों में पाले गए। 


सख़्त हैं इतनी पाबंदियां, 

पड़ नफ़स तक के लाले गए ।


इतनी दहशत नगर में मची, 

ख़ूब पत्थर उछाले गए।


हाथ जिसके भी जो शय लगी,

वो उसी को उठा ले गए।


नफ़स-साँस


© पुनीत कुमार माथुर, गाज़ियाबाद 



विज्ञापन 




Share To:

Post A Comment: