एक ग़ज़ल... 


आपका वो रूठ जाना याद है, 

और फ़िर मेरा मनाना याद है.


तेरी यादों को समेटे चल दिया,

अब तो बस गुज़रा ज़माना याद है.


जो लगी थी तेरे हाथों में हिना,

रात भर उसको सुखाना याद है.


रोज़ ही एक आस दिल में पालना, 

रोज़ ही आंसू बहाना याद है.


एक ग़लतफ़हमी की काटी है सज़ा, 

बेवफ़ा कहलाए जाना याद है.


जब लगा हमको कि सब कुछ ठीक है,

बस तभी दिल टूट जाना याद है.


अश्क़ भी जाने कहाँ ग़ुम हो गए, 

एक समंदर सूख जाना याद है.

   

पुनीत कुमार माथुर, एडिटर न्यूज़ लाइव टुडे   

गाज़ियाबाद (उप्र)



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