🙏जय श्री राधे कृष्ण🙏 


मित्रों आज ये दो श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय 'विभूति योग' से ही लिए हैं ..


 यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।

तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्‌ ॥ 

(अध्याय 10, श्लोक 41)


अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन ।

विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्‌ ॥  

(अध्याय 10, श्लोक 42)


इन श्लोकों का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं) - जो-जो ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तुयें है, उन-उन को तू मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुआ समझ।  

 

किंतु अर्जुन! तुझे इस प्रकार सारे ज्ञान को विस्तार से जानने की आवश्यकता ही क्या है, मैं तो अपने एक अंश मात्र से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करके सर्वत्र स्थित रहता हूँ।  


शुभ प्रभात ! 


पुनीत कुमार माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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