जय राधा माधव 🌹🙏🏻
आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से ।
ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा॥
(अध्याय 5, श्लोक 10)
इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) जो पुरुष आसक्ति रहित होकर सब कर्मों को ब्रह्म (यहाँ प्रकृति) द्वारा होने वाला जान कर करता है, वह पाप से उसी प्रकार लिप्त नहीं होता जैसे जल से (उसमें डूबा हुआ) कमल का पत्ता।
सुप्रभात !
पुनीत कुमार माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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