राधे राधे 🌹🙏 


आज का श्लोक मैंने लिया है  श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 


ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।

निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते॥

(अध्याय 5, श्लोक 3)


इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) हे वीर अर्जुन ! जो न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, उस कर्मयोगी को सदा संन्यासी ही जानना चाहिए क्योंकि (राग-द्वेष आदि) द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है।


सुप्रभात ! 


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद

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