जो दिल से की नहीं है वो आशिक़ी नहीं है,
वो बेदिली लगे है दिल की लगी नहीं है.
ग़र पहले जान जाते तो इश्क़ ही न करते,
दिल का लगाना कोई ये दिल्लगी नहीं है.
क्या फ़ायदा जो राहें उसमें दिखाई ना दें,
ना रौशनी दे पाए वो चांदनी नहीं है.
औरों के काम आना है फ़र्ज़ आदमी का,
जो कर सके न ये, वो आदमी नहीं है.
आबोहवा उसे भी रास आ गयी शहर की,
बातों में आज उसके वो सादगी नहीं है.
तन्हा रहा हूँ अक्सर अपने वीरान घर में,
हाँ, दोस्तों की लेकिन कोई कमी नहीं है.
ख़ैरात बांटते हैं सबको दिखा-दिखा कर,
नेकी में ये दिखावा तो बंदगी नहीं है.
© पुनीत कुमार माथुर
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