नई दिल्लीः पुनीत माथुर । बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर भारत-म्यांमार सम्बन्धों के बीच सेतु का कार्य कर रही है। 15 जुलाई 10 को सैन्य शासक राष्ट्रपति थान श्वे की यात्रा के ठीक 15 माह बाद 2012 में लोकतांत्रिक सरकार के राष्ट्रपति चिन सिन ने यहां की यात्रा की थी। म्यांमार के विदेश मंत्री, संस्कृति व उद्योग मंत्री समेत दर्जन भर से अधिक राजनयिक यहां की यात्रा पर आ चुके।

रविवार को यहां के प्रमुख बौद्ध भिक्षु ज्ञानेश्वर को सर्वोच्च धार्मिक सम्मान प्रदान करने के लिए म्यांमार के भारत में राजदूत ऊ मोचो यांग यहां आए तो पुनः दोनों देशों के सम्बन्धों को लेकर चर्चा छिड़ गईं। यूं तो कुशीनगर दुनिया भर के बौद्ध देशों के नागरिकों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। म्यांमार भी इससे अछूता नहीं है। किन्तु मूल रूप से म्यांमार के अब भारतीय नागरिकता प्राप्त भिक्षु ज्ञानेश्वर के प्रबंधन वाले म्यांमार बौद्ध विहार के प्रति भी म्यांमार के नागरिकों की आस्था है। यात्रा के दौरान राष्ट्रपति व राजनयिकों का यहां ठहराव होता रहा है।

शनिवार देर शाम आए राजदूत भी यहीं ठहरे। भिक्षु को म्यांमार सरकार का ‘अभिधज्जा महारथा गुरु’ सम्मान दिया जाना सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाए जाने की दिशा में उठाया गया कदम बताया जा रहा है। बौद्ध भिक्षु को इसके पूर्व भी म्यांमार सरकार ‘अग्गमहासद्यम द्युतिक द्युन’ सम्मान से नवाज चुकी है। म्यांमार के लोग बौद्ध भिक्षु द्वारा बनवाए गए छांता जी जेडी चैत्य के प्रति भी गहरी आस्था रखते हैं। बौद्ध भिक्षु ने सम्मान से मिली धनराशि चैत्य को बनवाने में खर्च कर दी। चैत्य के गोल्ड कलर में रंगाई के लिए राष्ट्रपति चिन सिन 80 लाख का गोल्ड दान किया था। यह चैत्य भारत में निर्मित अन्य चैत्यों से भिन्न है।

म्यांमार के नागरिकों में नव ग्रहों की शांति के लिए पूजन अर्चन के लिए चैत्य की गहरी मान्यता है। 108गुणे 108 के व्यास में निर्मित चैत्य दोनों देशों की मिली जुली बौद्ध स्थापत्य कला का नमूना है। “भन्ते ज्ञानेश्वर 25-30 साल के दौरान बौद्ध तीर्थ स्थलों के विकास व बौद्ध साहित्य के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। म्यांमार सरकार इनके योगदान को समय-समय पर रेखांकित करती है।

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