एक ग़ज़ल 💕


वो पहले तो ख़्वाबों में आता न था,

तसव्वुर में था पर ज़ियादा न था. 


है दिल का लगाना महज इत्तेफ़ाक़, 

हमारा तो कोई इरादा न था.


बड़ा फ़र्क उसमें दिखाई दिया, 

वो इतना कभी पहले सादा न था.


हमारा हमेशा वो बन कर रहे,

किया कोई ऐसा तो वादा न था.


कई ज़ख्म पहले भी लगते तो थे, 

मगर दर्द इतना सताता न था.


ग़मों का मुझे ख़ौफ़ ऐसा रहा, 

ख़ुशी में भी मैं मुस्कुराता न था.


हमें भी कोई चाहता था कभी,

ये आधा ही सच, ख़ैर आधा न था.


©  पुनीत कुमार माथुर, गाज़ियाबाद 

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