जय राधा माधव 🌹🌺🙏🏻


मित्रों आज के ये दो श्लोक  श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग' से ...


ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते ।

अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 13)


सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्‌ ।

सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥ 

(अध्याय 13, श्लोक 14)


इन श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को परमात्मा के स्वरूप के बारे में  बता रहे हैं)-  हे अर्जुन! जो जानने योग्य है अब मैं उसके विषय में बतलाऊँगा जिसे जानकर मृत्यु को प्राप्त होने वाला मनुष्य अमृत-तत्व को प्राप्त होता है, जिसका जन्म कभी नही होता है जो कि मेरे अधीन रहने वाला है वह न तो कर्ता है और न ही कारण है, उसे परम-ब्रह्म (परमात्मा) कहा जाता है। 

वह परमात्मा सभी ओर से हाथ-पाँव वाला है, वह सभी ओर से आँखें, सिर तथा मुख वाला है, वह सभी ओर सुनने वाला है और वही संसार में सभी वस्तुओं में व्याप्त होकर स्थित है। 


सुप्रभात ! 


पुनीत कुमार माथुर  

mpuneet464@gmail.com

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