🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज मैं श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तम योग' का बहुत सुंदर श्लोक प्रस्तुत कर रहा हूँ ..


ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।

मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥

(अध्याय 15, श्लोक 7)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं)- इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है (जैसे एक ही आकाश जल से भरे अलग अलग घड़ों में अलग अलग दिखाई देता  है वैसे ही सब प्राणियों में एकीरूप से स्थित हुआ भी परमात्मा अलग अलग प्रतीत होता है, इसी से देह में स्थित जीवात्मा को भगवान ने अपना 'सनातन अंश' कहा है) और वही इन प्रकृति में स्थित मन और पाँचों इन्द्रियों को आकर्षित करता है।


सुप्रभात ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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