जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏 


मित्रों आज मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयमयोग' से श्लोक लिया है।


ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः । 

युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकांचनः ৷৷6.8৷৷

(अध्याय 6, श्लोक 8)


इस श्लोक का अर्थ है : जिसका अन्तःकरण ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकाररहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भलीभाँति जीती हुई हैं और जिसके लिए मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं, वह योगी युक्त अर्थात भगवत्प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है। 


सुप्रभात ! 


पुनीत कृष्णा 

ग़ाज़ियाबाद

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