एक ग़ज़ल .....
आप बेपर्दा महफ़िल में आओ कभी,
बिजलियाँ सबके दिल पर गिराओ कभी।
तीश्नगी खींच लाई तेरे दर तलक,
जाम नज़रों के अपनी पिलाओ कभी।
मेरी बातों पे यूं ही न कर ऐतबार,
मेरी बातों को तुम आज़माओ कभी ।
नाज़ उठाता हूँ मैं तेरे शामो-सहर,
मैं जो रूठूंं तो तुम भी मनाओ कभी।
सोच कर ही उदासी सी छाने लगे,
ऐसी बातों को दिल से भूलाओ कभी।
आपसे सिर्फ़ इतनी सी है इल्तिज़ा
छोड़ कर तन्हा हमको ना जाओ कभी ।
ये न हो उम्र भर को रहे फ़िर मलाल,
बात इतनी न आगे बढ़ाओ कभी।
© पुनीत कुमार माथुर, ग़ाज़ियाबाद
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