जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏
आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के पन्द्रहवें अध्याय 'पुरुषोत्तमयोग' से। इस श्लोक में श्री कृष्ण अपनी प्रकृति को बता रहे हैं।
सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो- मत्त स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च ।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो- वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥
(अध्याय 15, श्लोक 15)
इस श्लोक का अर्थ है : मैं ही सबके हृदय में अन्तर्यामी रुप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और उसका अभाव होता है, और सब वेदों द्वारा जानने योग्य भी मैं ही हूँ तथा वेदांत का कर्ता और वेदों को जानने वाला मैं ही हूँ ।
सुप्रभात ! !
पुनीत कुमार माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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