जय श्री राधे कृष्णा 🌺🌹🙏 


मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के पांचवे अध्याय 'कर्म संन्यास योग' से । 


शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।

कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः॥

(अध्याय 5, श्लोक 23)


इस श्लोक का अर्थ है : (श्री कृष्ण भगवान कहते हैं) जो मनुष्य इस शरीर का नाश होने से पूर्व ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही योगी है और वही सुखी है। 


सुप्रभात ! 


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद

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