जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏
मित्रों आज का श्लोक मैंने लिया है श्रीमद्भगवद्गीता के तेरहवें अध्याय 'क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग' से। इस श्लोक में श्री कृष्ण अपनी प्रकृति को बता रहे हैं।
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ॥
(अध्याय 13, श्लोक 16)
इस श्लोक का अर्थ है : वह परमात्मा परिपूर्ण होने पर भी सभी प्राणियों में विभक्त सा प्रतीत होता है । तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णुरुप से पालन पोषण करने वाला, रुद्र (शिव) रुप से संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रुप से सब को उत्पन्न करने वाला है ।
सुप्रभात ! !
पुनीत कुमार माथुर
ग़ाज़ियाबाद
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