जय श्री कृष्णा 🌹🙏


मित्रों आज का श्लोक मैंने श्रीमद्भगवद्गीता के छठे अध्याय 'आत्मसंयमयोग' से लिया है । 


उद्धरेदात्मनाऽत्मानं  नात्मानमवसादयेत्।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।

( छठा अध्याय, श्लोक 5)


इस श्लोक का अर्थ है : मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिए क्योंकि आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है ।


आपका दिन मंगलमय हो !


पुनीत कुमार माथुर

ग़ाज़ियाबाद ।

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