जय श्री राधे कृष्णा 🌹🙏


मित्रों कल के श्लोक के साथ ही श्रीमद्भगवद्गीता का समापन हो गया। मैंने 5 जून 2020 को इस शृंखला का आरंभ किया था और लगातार 297 दिनों से यह शृंखला चल रही है। 


आज से इस शृंखला को एक नए रूप में आगे बढ़ाते हुए मैं आगामी दिनों में श्रीमद्भगवद्गीता के चुनिंदा श्लोक प्रस्तुत कर रहा हूँ ....


हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)


इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से'  श्रेयस्कर और कुछ नहीं है)। 


आपका दिन शुभ हो ! 


पुनीत कुमार माथुर 

ग़ाज़ियाबाद ।

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