🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज का ये दोनों श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..


य इमं परमं गुह्यं मद्भक्तेष्वभिधास्यति ।

भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ॥

(अध्याय 18, श्लोक 68)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्णा अर्जुन से कहते हैं) - जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको ही प्राप्त होगा- इसमें कोई संदेह नहीं है।


न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः ।

भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ॥

(अध्याय 18, श्लोक 69)


इस श्लोक का भावार्थ : उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है तथा पृथ्वीभर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं।


आपका दिन शुभ हो !  


पुनीत माथुर, 

ग़ाज़ियाबाद।

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