जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज का ये श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन ।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ॥
(अध्याय 18, श्लोक 67)
इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्णा अर्जुन से कहते हैं) - तुझे यह गीता रूपी रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति-(वेद, शास्त्र और परमेश्वर तथा महात्मा और गुरुजनों में श्रद्धा, प्रेम और पूज्य भाव का नाम 'भक्ति' है।)- रहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिए तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है, उससे तो कभी भी नहीं कहना चाहिए।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर,
ग़ाज़ियाबाद।
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