🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज का ये सुंदर श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..


चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः ।

बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव ॥

(अध्याय 18, श्लोक 57)


इस श्लोक का भावार्थ : (भगवान श्री कृष्णा कहते हैं) - सब कर्मों को मन से मुझमें अर्पण करके तथा समबुद्धि रूप योग को अवलंबन करके मेरे परायण और निरंतर मुझमें चित्तवाला हो। 


शुभ मंगलवार !  


पुनीत माथुर, इंदिरापुरम,ग़ाज़ियाबाद।

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