🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏
मित्रों आज का ये सुंदर श्लोक भी श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..
मुक्तसङ्गोऽनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वितः ।
सिद्ध्यसिद्ध्योर्निर्विकारः कर्ता सात्त्विक उच्यते ॥
(अध्याय 18, श्लोक 26)
इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान कहते हैं) - जो कर्ता संगरहित, अहंकार के वचन न बोलने वाला, धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य के सिद्ध होने और न होने में हर्ष -शोकादि विकारों से रहित है- वह सात्त्विक कहा जाता है।
आपका दिन शुभ हो !
पुनीत माथुर
ग़ाज़ियाबाद।
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