🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज का ये सुंदर श्लोक   भी श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..


यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुनः ।

क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ॥

(अध्याय 18, श्लोक 24)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान कहते हैं) - परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है।

 

आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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