एक ग़ज़ल ....
जो मुझसे तोड़ कर रिश्ता गया है,
उसे पाने का मुझमें हौसला है।
कोई पूछे तो उसको क्या बताऊँ,
हमारे दरमियाँ क्यूँ फ़ासला है ।
बहुत बदले हुए हैं उसके तेवर,
बड़े दिन बाद जब मुझसे मिला है।
ज़रा सी बात पर नाराज़गी क्यूँ,
वफ़ाओं का हमारी ये सिला है ?
रहूँ तन्हा या हो फ़िर साथ तेरा,
मुझे मंज़ूर रब का फ़ैसला है।
मेरी बाज़ी पलट दी दुश्मनों ने,
कोई तो दोस्त उनसे जा मिला है।
उजाड़ा किसने दिल का ये नशेमन,
अभी तूफाँ न कोई ज़लज़ला है।
© पुनीत कुमार माथुर, ग़ाज़ियाबाद
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