नई दिल्ली : पुनीत माथुर। आजाद भारत की पहली महिला कैदी को दी जाने वाली फ़ासी के लिए बक्सर केन्द्रीय कारागार में तैयार है। मलीने के सूत से बना फ़ासी का फंदा। केन्द्रीय कारागार के आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि उक्त फंदे को केन्द्रीय सरकार से आदेश मिलने के बाद तैयार किया गया है। जिसे अब मथुरा और आगरा के जेलों को भेजा जाना शेष है। फ़ासी की तिथि का एलान होते ही कड़ी निगरानी में इसे भेजा जाना है।

7 परिजनों की हत्या के मामले में थी जेल में बंद

अमरोहा की रहने वाली शबनम को मौत की सजा दी जाएगी। इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। निर्भया के आरोपियों को फांसी पर लटकाने वाले मेरठ के पवन जल्लाद भी दो बार फांसीघर का निरीक्षण कर चुके हैं। हालांकि फांसी की तारीख अभी तय नहीं की गयी है। गौरतलब है कि अमरोहा की रहने वाली शबनम ने अप्रैल 2008 में प्रेमी के साथ मिलकर अपने सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर बेरहमी से हत्या कर दी थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शबनम की फांसी की सजा बरकरार रखी थी। राष्ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका ख़ारिज कर दी है।

उल्लेखनीय है कि बक्सर केन्द्रीय कारागार में तैयार होने वाले इन फ़ासी के फंदे का एक अलग ही दासता है।1861 में गंगा और ठोरा नदियों के संगम पर गुलामी के दौर में बनाये गये इस जेल को मूलतः 1857 के विद्रोहियों के लिए बनाया गया था ।1947 में देश आजाद होने के बाद बक्सर जेल को तब एक अलग ही पहचान मिली जब तत्कालीन बंदी दो भाइयों सुखदेव और हरी देव द्वारा मनिला (फ्रांस ) से आयातित कपास से फ़ासी का फंदा बनाया गया ।

फंदे की विशेषता यह होती है कि यह इतना मुलायम होता है कि अभियुक्तों को फ़ासी के तख़्त पर झूलने के बावजूद गले पर निशान नही पड़ता।साथ ही कई किवदंतियों का पालन करते हए आज भी यहा के सिद्धहस्त कारीगर फ़ासी का फंदा तैयार कर रहे है ।इस कार्य के लिए बक्सर केन्द्रीय कारा परिसर में विशेष कोठरी और जगह बनाये गये है।

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