🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


मित्रों आज के इन तीन श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण तीन प्रकार के ज्ञान के विषय में बता रहे हैं .....


सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते ।

अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥

(अध्याय 18, श्लोक 20)


पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् ।

वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ॥

(अध्याय 18, श्लोक 21)


यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तमहैतुकम् ।

अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम् ॥

(अध्याय 18, श्लोक 22)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान कहते हैं) - जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब में एक अविनाशी परमात्मभाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्त्विक जान।

किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण प्राणियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान।

परन्तु जो ज्ञान एक कार्यरूप शरीर में ही सम्पूर्ण के सदृश आसक्त है तथा जो बिना युक्तिवाला, तात्त्विक अर्थ से रहित और तुच्छ है- वह तामस कहा गया है।


शुभ रविवार ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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