🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏 


आज के ये दो श्लोक भी  श्रीमद्भगवद्गीता के अट्ठारहवें अध्याय 'मोक्षसंन्यासयोग से ही ..


नियतस्य तु सयासः कर्मणः न उपपद्यते। 

मोहात्तस्य परित्यागः तामसः परिकीर्तितः।।

(अध्याय 18, श्लोक 7)


दुःखम् इति एव यत् कर्म कायक्लेशभयात् त्यजेत् । 

सः कृत्वा राजसम् त्यागम् न एव त्यागफलम् लभेत्।।

(अध्याय 18, श्लोक 8)


इस श्लोक का भावार्थ : (श्री भगवान कहते हैं) - परंतु नियत शास्त्रानुकूल कर्मका त्याग उचित नहीं है मोहके कारण अज्ञानता वश भाविक होकर उसका त्याग कर देना तामस त्याग कहा गया है।

जो कुछ भक्ति साधना का व शरीर निर्वाह के लिए कर्म है दुःखरूप ही है ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेशके भयसे अर्थात् कार्य करने को कष्ट मानकर कर्तव्य कर्मोंका त्याग कर दे तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्यागके फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता।


आपका दिन मंगलमय हो ! 


पुनीत माथुर  

ग़ाज़ियाबाद।

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